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7.9.15 श्री सुखदेवांजी 'लाडनूं' (सं. 1965-2021) 7/102
आपका जन्म संवत् 1942 में श्री ताराचंदजी चोरड़िया के घर हुआ। आप श्री मंगलचंदजी पगारिया की धर्मपत्नी थीं। उनका स्वर्गवास होने के बाद कार्तिक कृ. 1 को लाडनूं में श्री डालगणी से दीक्षा स्वीकार की। आप बड़ी तपस्विनी, वैराग्यवती और स्वाध्याय रसिका थीं, अपने 56 वर्षीय संयमी जीवन में तप त्याग द्वारा जीवन को निखारा आपने उपवास से नौ तक क्रमबद्ध तप किया जिसके कुल तप दिन 2824 होते हैं। अंतिम वर्षों में आप लाडनूं में स्थिरवास रहीं, वहां 24 दिन की संलेखना के बाद आजीवन अनशन किया, जो 44 दिन से संपन्न हुआ। कुल 68 दिन का संथारा कर सं. 2021 कार्तिक कृ. 14 को पंडित मरण प्राप्त किया।
7.9.16 साध्वी प्रमुखा श्री झमकूजी 'चूरू' (सं. 1965-2002 ) 7/103
आप तेरापंथ धर्मसंघ में षष्ठम साध्वी प्रमुखा के रूप में सम्माननीया हैं। आपश्री का जन्म सं. 1944 कार्तिक कृष्णा 13 को श्री रामलालजी हीरावत, थैलासर ( रतननगर) निवासी के यहां हुआ । एवं विवाह चूरू निवासी श्री पांचीरामजी पारख के साथ हुआ। नियति का अटल योग कि शादी के अढ़ाई वर्ष पश्चात् ही श्री रामलालजी परलोकवासी हो गये। झमकूजी ने साहस बटोरकर उस विरह व्यथा को धर्मचर्या व धर्मकथा में परिवर्तित किया, उन्हें कई वर्षों संयम पथ के अवरोधों को दूर करने में लगे, अंततः 21 वर्ष की अवस्था में संवत् 1965 कार्तिक शुक्ला 5 के शुभ दिन आचार्य श्री डालगणी के कर कमलों से लाडनूं में दीक्षा स्वीकार की।
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
आपको प्रारम्भ से ही कला के प्रति सहज आकर्षण था, हस्तलाधव, सौन्दर्य - सुषमा एवं नई स्फुरणा से ऐसी कलाकृतियां निर्माण की, कि आज भी वे वस्तुएं जन-जन के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई हैं। साध्वियों की शल्य चिकित्सा का प्रसंग आता तो वे प्रायः अपने हाथों से सम्पन्न कर देतीं। साध्वी मूलांजी के भुजदण्ड पर बहुत बड़ा फोड़ा हो गया था, डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिये कहा, झमकूजी ने उसी समय कपूर का तेल एक अन्य वस्तु के साथ लगाया, और चंद क्षणों में ही उसकी शल्य चिकित्सा कर दी । एकबार आपने स्वयं की अंगुली के फोड़े की शल्य क्रिया की । समय पड़ने पर वे साध्वियों को इंजेक्शन भी अपने हाथों से लगा देती थीं। आपश्री के विनय-व्यवहार, आचार-कुशलता, सेवा- परायणता, नियम-निष्ठा, निरभिमानता, सहनशीलता, क्षमता, निर्भयता, आत्मीयता आदि के कई प्रसंग मुनि नवरत्नमलजी ने शासन-समुद्र भाग 13 में तथा साध्वी राजीमती ने आचार्य भिक्षु स्मृति ग्रंथ" में संजोये हैं। आपकी विरल विशेषताओं से उल्लसित होकर भाद्रपद शुक्ला 9 सं. 1993 में चतुर्विध संघ के समक्ष आचार्य श्री तुलसी ने साध्वी प्रमुखा पद पर नियुक्त किया। साध्वी प्रमुखा श्री झमकूजी ने 37 वर्ष तक तेरापंथ शासन को स्वाध्याय, ध्यान, नवीन कार्यशैली आदि में बहुत कुछ सहयोग प्रदान किया। अंत संवत् 2002 आषाढ़ कृ. 6 को शार्दूलपुर में आप अमरलोक की ओर प्रस्थित हो गईं।
7.9.17 श्री भूरांजी 'पुर' (सं. 1965-2020 ) 7/104
आपका जन्म संवत् 1935 को श्री हजारीमल जी चौधरी के यहां 'आरज्या' ग्राम में हुआ। श्री भूरांजी ने पति वियोग के बाद श्री डालगणी से लाडनूं में कार्तिक शुक्ला 13 को दीक्षा अंगीकार की। आप लगभग 55 वर्ष संयम की आराधना में लगी रहीं घोर तपस्या करके तपस्विनी साध्वियों की कड़ी में अपना विशिष्ट स्थान बनाया। आपके 11. साध्वी राजीमती जी, तेरापंथ की अग्रणी साध्वियाँ, पृ. 180.
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