SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 888
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास आजीवन तीन विगय व 13 द्रव्य से अधिक वस्तु आहार में ग्रहण नहीं करती थीं। आपने उपवास से दस दिन तक लड़ीबद्ध तप किया, कुल 2273 दिन तप में व्यतीत किये। सरदारगढ़ में आपका अंतिम चातुर्मास हुआ। 7.9.8 श्री दाखांजी 'खरणोटा' (सं. 1960-2007) 7/53 आपका जन्म श्री दौलतरामजी पीतलिया के यहां संवत् 1941 में हुआ, आप श्री तोलारामजी बोला की सहधर्मिणी थीं, पतिवियोग के बाद बीदासर में पौष कृष्णा 6 को आचार्य डालगणी से दीक्षा अंगीकार की। आप सं. 1986 से अग्रगण्या बनीं, ग्रामानुग्राम धर्म की खूब उन्नति की। प्रकृति से सरल, कोमल और मधुरभाषिणी थीं, संयम-चर्या में जागरूक व तपस्विनी थीं। उपवास 1500, बेले 73 तेले 17, चोले 18, पचोले 13, छह 3, सात 7, आठ 8, नौ, दस व ग्यारह 1 बार, 12 से 23 तथा 27 से 32 तक क्रमबद्ध तप चला। आश्विन शु. 15 को सोजतरोड में आपका देहावसान हुआ। 7.9.9 श्री जड़ावांजी 'डीडवाना' (सं. 1960-90) 7/55 आपका जन्म संवत् 1932 श्री चंदनमलजी सुराणा कुचेरा वालों के यहां हुआ। आप आसकरणजी पारख की धर्मपत्नी थीं, उनका स्वर्गवास होने के बाद बीदासर में माघ शुक्ला 7 को दीक्षा ग्रहण की। आप बड़ी तपस्विनी हुईं, आपके तप के समग्र आंकड़े इस प्रकार हैं-उपवास 976, बेले 332, तेले 22, चोले 15, पांच 7, छह 3, आठ 2 आगे सात से सोलह तक फिर इक्कीस दिन की तपस्या एक बार की। जसोल में आप दिवंगत हुईं। 7.9.10 श्री पाखतांजी 'छापर' (सं. 1961-2029) 7/71 आपका जन्म बीकानेर के मलसीसर ग्राम में संवत् 1943 को श्री जालमचंदजी मालू के यहां हुआ। आप छापर निवासी श्री हनूमतमलजी नवलखा की पुत्रवधू थीं पति श्री हीरालालजी का स्वर्गवास होने पर सं. 1961 वैशाख कृ2 5 के शुभ दिन रतनगढ़ में दीक्षा अंगीकार की। आपने जीवन के सभी क्षेत्रों में विकास किया। समग्र जीवन काल में करोड़ों पद्यों का पुनरावर्तन किया। आपने ज्ञान-ध्यान, त्याग, वैराग्य, सेवाभावना एवं तपस्या के द्वारा संयमी जीवन को सोने की तरह चमकाया। आपकी श्रद्धा, संघनिष्ठा, सेवा, वाणी-माधुर्य कष्ट-सहिष्णुता के अनेक संस्मरण शासन-समुद्र में उल्लिखित हैं। आपने कुल 3129 दिन तप में व्यतीत किये, हजारों एकासन भी किये, कुल 88 वर्ष में 68 वर्ष संयम पर्याय का पालन कर चाड़वास में संथारा सहित स्वर्ग की ओर प्रस्थित हुईं। 7.9.11 श्री सोनांजी 'सरदारशहर' (सं. 1962-2027) 7/74 श्री सोनांजी का जन्म सं. 1932 को सोनपालसर ग्राम के श्री भैरुंदानजी के यहां हुआ 13 वर्ष की उम्र में श्री शेरमलजी बोथरा के पुत्र श्री प्रेमचंदजी के साथ ब्याही गई, उनसे सोनांजी को दो संतानों की प्राप्ति हुई, 21 वर्ष की अवस्था में पति का स्वर्गवास हो गया, उसके पश्चात् आप आचार्य श्री डालगणी के द्वारा लाडनूं में भाद्रपद कृष्णा 13 को दीक्षित हो गईं। आपश्री बड़ी तपस्विनी हुईं, साध्वी जीवन में आपने उपवास 5023, बेले 436, तेले 229, चोले 49, पचोले 7. छह दो, 12 उपवास तक क्रमबद्ध तप, 18 व 19 उपवास भी किये। गृहस्थावस्था में भी 9 को छोडकर । 826 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy