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तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ
7.8.5 श्री मधुजी 'रीडी' (सं. 1953-2012 )
आपका जन्म बीदासर में श्री उदयचंदजी मरोठी के यहां संवत् 1934 में हुआ एवं विवाह श्री प्रतापमलजी भंसाली में हुआ। पतिवियोग के पश्चात् आपने भाद्रपद कृष्णा 11 को बीदासर में माणकगणी से दीक्षा स्वीकार की। आपने तपस्विनी साध्वियों की श्रेणी में अपना नामांकन करवाया । उपवास 2208, बेले 76, तेले 11, चोले 8, पचोले 5, नौ 1 बार किया। कई वर्षों तक एकांतर तप भी किया। 60 वर्ष संयम का निर्वाह कर सं. 2012 चाड़वास में समाधिपूर्वक देह त्याग किया।
7.8.6 श्री वाल्हांजी 'सिरसा' (सं. 1953-2009 ) 6/23
साध्वी वाल्हांजी का जन्म 'रीणी' गांव के श्री दुरजनदासजी के यहां सं. 1938 में हुआ। उनके पति का नाम खुमाणचंदजी नवलखा था। पतिवियोग के पश्चात् 16 वर्ष की वय में अक्षय तृतीया के दिन श्री भरांजी द्वारा राजगढ़ में दीक्षा अंगीकार की । आप बड़ी तपस्विनी हुईं, आपके तप की तालिका में 1744 उपवास, 622 बेले, 88 तेले, 60 चोले, 50 पचोले, 15 छह, 6 सात, 18 अठाई, 3 नौ, दस, ग्यारह, बारह, तेरह, चौदह का तप दो-दो बार 15 तीन बार, 16, 17 दो बार, मासखमण एकबार इस प्रकार कुल 4306 दिन तप में व्यतीत किये। आपने कर्मचूर, धर्मचक्र, वर्षीतप व लघुसिंहनिष्क्रीड़ित तप भी ( प्रथम परिपाटी) किया। अंत में 30 दिन के तिविहार तप में 4 दिन के संथारे के साथ लाडनूं में स्वर्गवासिनी हुईं।
7.8.7 श्री धन्नांजी 'जसोल' (सं. 1954-93 ) 6/25
आपके पिता श्री मोटारामजी मुणोत और पति श्री गुलाबचंदजी चोपड़ा थे। पतिवियोग के पश्चात् साध्वी जांजी के द्वारा बालोतरा में दीक्षा स्वीकार की। उस समय माणकगणी का स्वर्गवास हो गया था और डालगणी का निर्वाचन नहीं हुआ था। आप दीर्घ तपस्विनी साध्वी थीं, आपने 9, 18, 27, 29 दिन छोड़कर उपवास से 32 दिन तक लड़ीबद्ध तप किया। इसमें 1500 उपवास, 142 बेले 103 तेले, 57 चोले, 54 पचोले, 6 छह, 5 सात, 6 आठ, 2 दस किये शेष तप एक बार किया। धर्मचक्र, कर्मचूर एवं लघुसिंहनिष्क्रीड़ित तप की चौथी परिपाटी संपूर्ण की'। आपका स्वर्गवास संवत् 1993 चैत्र कृष्णा 4 को 'सुधरी' में हुआ।
7.9 सप्तम आचार्य श्री डालगणी के शासन काल की प्रमुख श्रमणियाँ (सं. 1954-66)
तेरापंथ धर्मसंघ के सातवें आचार्य श्री डालगणी आगम-मर्मज्ञ शास्त्रार्थ निपुण, तार्किक प्रतिभा के धनी, उग्र पाद - विहारी तेजस्वी आचार्य थे। माणकगणी के अकस्मात् स्वर्गवास के पश्चात् धर्मसंघ में उनका निर्विरोध निर्वाचन हुआ। मुनि जीवन के 43 वर्ष के काल में उन्होंने 12 वर्ष तक तेरापंथ धर्मसंघ के दायित्व का कुशलता से संचालन किया । वि. सं. 1966 भाद्रपद शुक्ला द्वादशी के दिन लाडनूं में उनका स्वर्गवास हुआ। आचार्य डालगणी के शासन में 36 श्रमण व 125 श्रमणियों ने अध्यात्म मार्ग का अनुसरण किया, एवं अद्वितीय कीर्तिमान स्थापित किया। इस युग की उल्लेखनीय विशेषता यह रही कि शत-प्रतिशत 125 ही श्रमणियों ने सानद संयम 9. इनकी विधि देखें - शासन - समुद्र, भाग 13, पृ. 54-57.
10. शासन-समुद्र, भाग 13.
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