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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास में आप स्वर्गवासी हो गये। साढ़े 4 वर्ष की अवधि में 15 साधु तथा 25 साध्वियाँ दीक्षित हुईं। जिनमें दो साध्वियाँ गण से पृथक् हो गईं। शेष 23 ने निर्मल संयम का पालन किया। इनके शासनकाल की साध्वी धन्नांजी ने विविध तपोनुष्ठान के साथ लघुसिंह निष्क्रीड़ित तप की चतुर्थ परिपाटी कर तेरापंथ धर्मसंघ को गौरवान्वित किया था। अय श्रमणियाँ भी उग्र तपस्विनी, संलेखना अनशन आराधिका अग्रगण्या व सेवाभाविनी के रूप में ख्याति प्राप्त हुई । 7.8.1. श्री विरधांजी 'बोरज' (सं. 1950-2006 ) 6/2 आपका जन्म सिसोदा (मेवाड़) के श्री नेमीचंदजी डूंगरवाल के यहां सं. 1925 में हुआ, एवं विवाह श्री जालमचंदजी गुंदेचा से हुआ। पतिवियोग के बाद पौष कृ. 10 को मुनि जयचंदलालजी द्वारा बोरज में दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के पश्चात् अनेक वर्ष आचार्यों की सेवा में रहीं, आपकी प्रकृति सरल थीं, संवत् 1984 से आपने अग्रणी पद पर रहकर शासन की विशिष्ट सेवा की। जहां भी जातीं शासन की प्रभावना करतीं। सरदारशहर चातुर्मास में आप लगभग 90 घरों से भिक्षा लाती थीं। आप तपस्विनी भी थीं। संयमी जीवन में 3014 उपवास, 321 बेले, 11 तेले 10 चोले, 3 पचोले एक 10 का तप किया। सं. 2006 पौष शु. 3 को रतनगढ़ में समाधिपूर्वक मृत्यु प्राप्त की । 7.8.2 श्री सुवटांजी 'राजलदेसर' (सं. 1951-85 ) 6/9 आपका जन्म राजलदेसर में श्री गिरधारीलालजी बैद के यहां सं. 1934 में हुआ। श्री हजारीमलजी कुंडलिया के साथ विवाह हुआ। पतिवियोग के बाद 17 वर्ष की उम्र में श्री माणकगणी से राजलदेसर में दीक्षा स्वीकार की। आप आगम विज्ञाता, सुलेखिका थीं, लाखों पद्य लिपिबद्ध किये। आप निर्भीक एवं साहसी भी थीं। स्व-परमती समाज में आपके व्यक्तित्व की धाक थी, संवत् 1963 से अग्रगण्या रूप में विचरीं । धर्म व शासन पर महान उपकार कर आप लाडनूं में स्वर्गवासिनी हुईं। 7.8.3 श्री रामकंवरजी 'भखरी' (सं. 1952-98) 6/11 आपका जन्म संवत् 1932 को बोरावड़ निवासी श्री मूलचंदजी बोथरा के यहां हुआ, ससुराल भखरी के कोठारी परिवार में था। पति श्री रामलालजी का वियोग होने पर आपने बोरावड़ में मृगसिर शुक्ला 5 को माणकगणी से दीक्षा ग्रहण की। आप तप में संलग्न रहकर आत्म-कल्याण में प्रवृत्त हुईं। आपने 1660 उपवास 317 बेले, 7 तेले, 24 चोले और 4 पचोले किये। चूरू में ज्येष्ठ कृष्णा 12 संवत् 1998 में आप दिवंगत हुईं। 7.8.4 श्री नानूंजी 'सरदारशहर' (सं. 1952-96) 6/16 आप सरदार शहर के श्री तेजमलजी छाजेड़ की पुत्री थीं एवं श्री जुहारमलजी दूगड़ की पत्नी थीं । पतिवियोग के बाद 26 वर्ष की वय में सरदारशहर में ही प्रथम ज्येष्ठ कृष्णा 6 को माणकगणी द्वारा दीक्षित हुईं। आप बड़ी तपस्विनी हुईं, आपके तप के आंकड़े रोमाञ्चित करने वाले हैं - उपवास 1386, बेले 547, तेले 92, चोले 124, पचोले 66, छह 13, सात 10, आठ 9, नौ 4, दस 4, ग्यारह 5, चौदह 1, पन्द्रह 3, सोलह 1, सत्रह 1, अठारह 1, बावीस 1, कुल 4065 दिन तप में व्यतीत किया । वैशाख कृष्णा 7 को लाडनूं में स्वर्गवासिनी हुईं। Jain Education International 822 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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