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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
7.3.15 श्री खुशालांजी (सं. 1857-67) 1/46
आप नाथद्वारा के शाह भोपजी सोलंकी की पुत्री थीं। मुनि खेतसी जी की लघु भगिनी एवं साध्वी रूपांजी की ज्येष्ठा भगिनी थीं। बड़ी रावलिया में ससुराल थी। पति का नाम शाह चतुरोजी बम्ब था। इनके तीन पुत्र थे-नानजी, मोतीजी, रायचन्द जी एवं मैना नाम की एक पुत्री थी। संवत् 1857 चैत्र शुक्ला पूर्णिमा के दिन बड़ी रावलिया में आचार्य भिक्षु के द्वारा आपकी दीक्षा हुई। रायचंद जी ने भी माता के साथ 11 वर्ष की उम्र में दीक्षा ली थी, वे तेरापंथ के तृतीय आचार्य बने। आप तेरापंथ संघ में गरिमा प्राप्त साध्वी थीं, सभी के हित में संलग्न रहती थीं, बड़ी विनयवान थी, आपको "भण्डारी" उपनाम से पुकारते थे। संवत् 1867 'आउवा' में 15 दिन की संलेखना के साथ आपका स्वर्गवास हुआ। 7.3.16 श्री जोतांजी (सं. 1857-1908) 1/48
आपकी ससुराल 'लाहवा' (मेवाड़) में बावलियां गोत्र में थी। 17 वर्ष की सुहागिन वय में संवत् 1857 में आचार्य भिक्षु के शासन में दीक्षित हुई। आपको दीक्षा न देने के उद्देश्य से घरवालों ने अनेक यातनाएं दी, तथापि विरक्ति का रंग फीका नहीं हुआ। आपकी बुद्धि बड़ी प्रखर थी, अतः शीघ्र शास्त्रज्ञाता हो गईं। वाणी की मधुरता एवं व्याख्यान कुशलता के कारण कइयों की आप संयमप्रेरिका बनीं। अपने जीवन में महती धर्म प्रभावना करके पाली में संवत् 1907 कार्तिक मास में संथारा सहित आप स्वर्गस्थ हुई।
7.4 द्वितीय आचार्य श्री भारीमलजी के शासनकाल की प्रमुख श्रमणियाँ (सं. 1860-78)
_आचार्य भिक्षु की धर्मक्रान्ति के साक्षात् दृष्टा व एकनिष्ठ सहयोगी के रूप में आचार्य भारीमलजी का नाम तेरापंथ संघ में आदर के साथ लिया जाता है। आचार्य भिक्षु ने अपने द्वारा अंकुरित व संवर्द्धित 105 श्रमण-श्रमणियों के विशाल परिवार का उत्तरदायित्व वहन करने के लिये मुनि भारीमलजी का चुनाव किया, वे इस संघ के द्वितीय आचार्य के रूप में मनोनीत हुए। आचार्य भारीमलजी ने संवत् 1860 से 1878 तक तेरापंथ संघ का कुशलतापूर्वक संचालन किया, इन 18 वर्षों की स्वल्पावधि में 38 साधु एवं 44 साध्वियों की अभिवृद्धि हुई। इस युग की उल्लेखनीय विशेषता यह रही कि जहां भिक्षु युग में 17 साध्वियाँ गण से पृथक् हुई, वहीं इस युग में मात्र तीन साध्वियाँ ही गण से बाहर हुईं। दूसरी, इस युग में कुमारी कन्या की दीक्षा का शुभारम्भ भी हुआ, तथा आगे उत्तरोत्तर इसमें अभिवृद्धि होती रही। आचार्य महाप्रज्ञजी के युग तक (संवत् 2059) कुल 738 कुमारी कन्याओं ने दीक्षा अंगीकार की। आचार्य भारीमलजी के समय 41 श्रमणियों ने अपने त्याग, तपोबल एवं धर्मप्रचार से धर्मशासन को गौरवान्वित किया। उनमें से कुछ प्रमुख श्रमणियों का गरिमामय व्यक्तित्व इस प्रकार है।
7.4.1 श्री आसूजी 'पीपाड़' (सं. 1861 या 62 से 1874) 2/1
आचार्य श्री भारीमलजी की प्रथम शिष्या बनने का सौभाग्य प्राप्त करने वाली आसूजी दोनों पक्ष के धनाढ्य और सुप्रसिद्ध परिवार के संबंधों को तोड़कर बीस वर्ष की सुहागिन अवस्था में साध्वी श्री हस्तूजी से दीक्षित हुई। आपने अनेक व्यक्तियों को सुलभबोधि व श्रावक बनाया, चार बहनों को भी दीक्षा प्रदान की, वे थीं-श्री 3. मुनि श्री नवरत्नमलजी, शासन-समुद्र, भाग-7, पृ. 192-360
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