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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
अंतिम श्रमणी
क्रम आचार्य
आचार्य भिक्षुजी । श्री भारमलजी श्री रायचंदजी श्री जयाचार्य श्री मधवागणी
श्री माणकगणी 7. | श्री डालगणी
काल (वि.सं) |श्रमणी संख्या | गणमुक्त सं. 1817-60 सं. 1860-78 सं. 1878-1908 सं. 1908-38 सं. 1938-49 सं. 1949-54 सं. 1954-66
प्रथम श्रमणी श्री कुशलांजी श्री आसूजी श्री लच्छूजी श्री चंदनाजी श्री जोधांजी श्री लिछमाजी श्री दाखांजी
श्री नोजांजी श्री चक्रूजी श्री मूलांजी श्री उमांजी श्री छगनांजी श्री धन्नांजी श्री संतोकाजी
श्री कालूगणी श्री तुलसीगणी श्री महाप्रज्ञजी
सं. 1966-93 सं. 1993-2052 सं. 2052-2063
श्री लिछमांजी श्री जतनकंवरजी श्री लावण्यप्रभाजी
श्री हुलासांजी श्री धवलप्रभाजी श्री शारदाप्रभाजी
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7.3 प्रथम आचार्य श्री भिक्षुकालीन प्रमुख श्रमणिया (विक्रम संवत् 1821 से 1860)
तेरापंथ धर्मसंघ की स्थापना के पश्चात् आचार्य भिक्षु ने स्वल्पावधि में अपने संघ का काफी विस्तार किया, उनके 42 वर्ष के शासनकाल में 49 साधु एवं 56 श्रमणियों का एक सुदृढ़ व संगठित समुदाय बना। यद्यपि संक्रमण काल की इस स्थिति में अनेक श्रमणियाँ गण से बहिर्भूत भी हुईं तथापि आचार्य भिक्षु के प्रभावशाली नेतृत्व, संघीय निष्ठा एवं वैचारिक एकरूपता से संघ में श्रमणियों की अभिवृद्धि होती रही। भिक्षुकालीन श्रमणियाँ प्रायः पतिवियोग के पश्चात् दीक्षित हुईं, जीवन के अंतिम समय तक निरतिचार तप एवं संयम का पालन कर अंत में संलेखना व संथारे के साथ पंडितमरण को प्राप्त हुईं।
उक्त सभी श्रमणियों का परिचय, व्यक्तित्व, शिक्षा, साधना, कला, सेवा, तपस्या, संलेखना, संथारा गण से पृथकता आदि तेरापंथ संघ के आचार्यों ने सुरक्षित रखा हुआ है। सर्वप्रथम जयाचार्य ने भिक्षु ग्रन्थ रत्नाकर, आर्यादर्शन, ऋषराय सुजश, भिक्खु जश रसायण, भिक्खु दृष्टान्त, शासन विलास आदि में अपने समय तक का पूरा इतिहास लिपिबद्ध किया, पश्चात् बड़े कालू जी द्वारा लिखित 'शासन ख्यात' यति हुलासचंद जी लिखित शासन प्रभाकर, श्री मघवागणि कृत जय सुयश, श्रीचन्द रामपुरिया का आचार्य भिक्षु धर्म परिवार एवं मुनि श्री नवरत्नमलजी द्वारा लिखित शासन-समुद्र के 13 भागों में तेरापंथ श्रमणी विषयक संपूर्ण जानकारी उपलब्ध होती है। तेरापंथ श्रमणियों के जीवन-वृत्त में हमने मुख्यतः आचार्य भिक्षु धर्म परिवार एवं शासन समुद्र के भागों का । ही उद्धरण दिया है।
7.3.1 श्री कुशलाजी (सं. 1821-60) 1/1
तेरापंथ संप्रदाय में आप सर्वप्रथम साध्वी के रूप में समादृत है। सं. 1821 में आचार्य भिक्षु ने मेवाड़ या । 1. श्रीचंद रामपुरिया, आचार्य भिक्षु धर्म परिवार, भाग-दो, पृ. 533-663
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