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तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ
मारवाड़ के किसी ग्राम में आप सहित तीन साध्वियों को एक साथ दीक्षा प्रदान की थी, अन्य दो साध्वियाँ मटूजी और अजबोजी थी। दीक्षा के बाद आपको ज्येष्ठ रखा गया।
कहा जाता है कि दीक्षा से पूर्व इन तीनों को भिक्षु ने प्रतिज्ञाबद्ध किया था, यदि तीन में से किसी एक का वियोग हो गया तो अन्य दो संलेखना करने को उद्यत रहेंगी। आपका स्वर्गवास सर्प-दंश से गुंदोच में हुआ। सर्प के उपसर्ग को अत्यन्त समता भाव से सहन किया, अन्य कोई उपचार न कराते हुए समाधिभाव से आप संवत् 1854 से 1860 के मध्य स्वर्गवासिनी हुईं, निश्चित तिथि ज्ञात नहीं है।
7.3.2 श्री सुजाणांजी (संवत् 1821-1854) 1/4 ____ आपकी दीक्षा संवत् 1821 और 1833 के मध्य होने का अनुमान है। आप अत्यन्त भद्र प्रकृति की साध्वी थी साथ ही समझदार भी। आपका देहावसान संवत् 1837 से 1854 के मध्य अनुमानित किया जाता है।
7.3.3 श्री देऊजी (दीक्षा सं.1821-33) 1/5
आप अति ओजस्विनी साध्वी थीं, आपकी दीक्षा संवत् 1821 से 1833 के मध्य होने का अनुमान है। आचार्य भिक्षु के काल में ही आपका स्वर्गवास हो गया था। जयाचार्य ने कुशलांजी मटूजी, सुजाणांजी और आपके विषय में 'ए च्यारू आरज्यां हुई चतुरमति' कहा है। 7.3.4 श्री गुमानांजी, श्री कसुम्बाजी (दीक्षा सं. 1821-33) 1/7-8 ____ आप दोनों भी आचार्य भिक्षु से 1821 से 1833 के मध्य दीक्षित हुई थीं। आप दोनों बड़ी गुणवान साध्वीजी थीं. दोनों का संथारे के साथ स्वर्गवास हुआ।
7.3.5 श्री मैणांजी (सं. 1833-60) 1/15
आपकी दीक्षा आचार्य भिक्षु के द्वारा सं. 1833 और 1834 के मध्य हुई थी। आप पुर ग्राम की (मेवाड़) निवासिनी थी, और पति को छोड़कर अत्यंत वैराग्य भाव से दीक्षित हुई थीं। आप एक विदुषी साध्वी हुईं, कइयों को आपसे दीक्षा की प्रेरणा मिली। भिक्षुजी ने आपके ऊपर कितने ही प्रतिबन्ध लगाए, जो बड़े कठोर थे, किंतु आपने उन सबको स्वीकार किया। एवं संघ की मर्यादा को अटूट रखा, इसीलिये आपको "मोटी सती" "समणी गण सिणगार" आदि विशेषणों से मंडित किया गया। आपने संवत् 1860 खैरवे में संथारा ग्रहण कर शरीर का त्याग किया।
7.3.6 श्री रंगूजी (सं. 1838-60) 1/20
___ आप नाथद्वारा (मेवाड़) के पोरवाल वंश की साध्वी थीं। आपकी दीक्षा आचार्य भिक्षु के द्वारा सं. 1838 में नाथद्वारा में ही संपन्न हुई। दीक्षा के कुछ वर्षों बाद ही आप अग्रणी बनकर विचरण करने लगी थीं, बगतूंजी, हीराजी और नगांजी साध्वियाँ आपकी नेश्राय में थी। ख्यात में लिखा है 'भण्या गुण्यां बिनैकर सोभा धणी लीधी' आपका स्वर्गवास सिरियारी में हुआ था।
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