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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 1.9.1 टिकिया साईं
_ 'पाटलिपुत्र के इतिहास' में पंडित प्रवर यति श्री सूर्यमल्ल जी ने एक स्त्री फकीर का उल्लेख किया है। इसका नाम 'टिकिया साई' था। यह मुसलमान फकीरों में अंतिम सिद्ध फकीर थी। इसकी बहुत प्रसिद्धि थी, अपने तपोबल से इसने ऐसे-ऐसे आश्चर्यजनक कार्य कर दिखाये कि जिनकी चर्चा आज भी पटना निवासी करते हैं। इसे हुए अनुमानतः सौ वर्ष व्यतीत हुए हैं।84
1.9.2 बीबी रहिमा
इस्लाम धर्म में 'बीबी रहिमा' का नाम भी 'संत-स्त्री' के रूप में अत्यन्त आदर के साथ लिया जाता है। इनका जीवन-वृत्त 'कलकत्ता नूर लायब्रेरी पब्लीकेशन्स' से सन् 1939 में प्रकाशित हुआ है। भाषा बंगाली है। 1.10 इस्लाम के सूफीमत में संन्यस्त स्त्रियाँ
सूफीमत इस्लाम धर्म का ही एक अंग है। सूफा के 'अबू हाशिम' ने सर्वप्रथम ईसा की नौवीं शताब्दी में 'सूफी' शब्द को अपने नाम के साथ जोड़कर एक आस्था प्रधान इस्लाम धर्म की नींव रखी थी।85 यद्यपि इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हजरत मुहम्मद ने संन्यास के प्रति उदासीनता दिखाई थी, किंतु सूफी साधकों ने ईसाई धर्म से संन्यास की प्रेरणा लेकर उपवास, आन्तरिक शुद्धि, कष्ट साधना, प्रार्थना एवं भगवान के प्रति 'आपा' और प्रेमभाव पर बल दिया। 12वीं सदी में भारत प्रवेश पर यहाँ की श्रमण-परम्परा का प्रभाव भी इन अरब मुसलमानों पर पड़ा, फलस्वरूप अनेक सूफी फकीर हुए। सूफी संप्रदाय में अनेकों स्त्री-साधिकाएँ भी हुई हैं, जो परमात्मा को अपना पति समझती थीं। 1.10.1 सूफी साधिका रबिया (ईसा की आठवीं सदी)
सूफी सम्प्रदाय की स्त्री-फकीरों में 'रबिया' का अग्रगण्य स्थान है। ईसा की आठवीं सदी में यह महातपस्विनी भक्त महिला तुर्की राज्य के 'बसरा' शहर में एक निर्धन परिवार की चतुर्थ कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थी। बचपन से ही दुःख, क्लेश व विपत्तियों के झंझावातों को समता से सहन करती हुई यह परमात्मा के प्रति दृढ़ आस्थावान बनी रही। रबेया ने ईश्वर की निष्काम प्रेम भक्ति में सराबोर होकर कुछ समय निर्जन अरण्य में, कुछ समय मस्जिद में और शेष जीवन मक्का में व्यतीत किया। मक्का में 'इब्राहिम आदम', 'अबदुल बाहेद अमर' और 'सूफियान' जैसे पहुँचे हुए साधक रबिया के विचारों का अत्यन्त आदर करते थे। वह ईश्वर से प्रार्थना करती थी कि - "हे परमेश्वर! मेरे लिये तूने जो भी सुन्दर चीजें देने के लिये निश्चित् की है, वे सब नास्तिक को दे देना, मेरे लिये तो तूं एक ही काफी है। तेरे सिवा मेरी अन्य कोई चाह नहीं।"86 रबिया ने अपनी प्रेमाभक्ति में अनेक
84. तित्थयर, वर्ष 26 अंक 4, पृ. 165 85. डॉ. श्रीमती राजबाला सिंह, मध्यकालीन भारत में सूफीमत का उद्भव और विकास, पृ. 11, अशोक प्रकाशन, नई सड़क,
दिल्ली, सन् 1995 86. मुस्लिम महात्माओं, पृ. 62-72
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