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________________ पूर्व पीठिका विदेशी महिलाओं का त्याग, धर्मनिष्ठा, प्रभुप्रेम एवं उनके प्रति वैदिक श्रद्धा उन्हें 'नारी साध्वी' के रूप में चित्रित करती है। 1.8.11 मदर टेरेसा (ई. 1910-97) ऊपर ईसाई साध्वियों में मदर टेरेसा का नाम विशेष रूप से 'मानव की निःस्वार्थ सेवा करने वाली विभूतियों में सबसे है। | मदर : टेरेसा का जन्म यूगोस्लाविया के स्कोपजे नामक छोटे से गाँव में 26 अगस्त 1910 को हुआ था । 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य 'मानव सेवा' का बनाया । 18 वर्ष की अवस्था में ईसाई साध्वी (NUN) बनने का निर्णय कर आयरलैंड पहुँची, वहाँ 'लोरेटोनन' के केन्द्र में सम्मिलित हुई। 1929 में भारत आई, यहाँ 'लोरेटो एटेली' स्कूल में अध्यापिका एवं पदोन्नति कर कलकत्ता में ही 'प्रधानाध्यापिका' पद पर प्रतिष्ठित हुई। किंतु पीड़ित मानवता की पुकार ने उनके हृदय को द्रवित किया, सन् 1950 में 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' की कलकत्ता में ही स्थापना की। इन्होंने असहाय लोगों के लिये 'निर्मल हृदय धर्मशाला' खोली। वे अपनी सहयोगिनी सिस्टर्स के साथ सड़क के किनारे गलियों में पड़े मरीजों को उठाकर ले जातीं और उनका निःशुल्क उपचार करतीं। सन् 1952 में स्थापित 'निर्मल हृदय' केन्द्र की आज विश्व भर में करीब 120 शाखाएँ कार्य कर रही हैं। इस संस्था के तहत 169 शिक्षण-संस्था 1369 उपचार केन्द्र और 755 आश्रय - गृह संचालित हैं। मदर टेरेसा का स्वभाव अत्यन्त सहनशील, असाधारण और करूणामय था । उनके मन में रोगियों, वृद्धों, भूखे, नंगे व निर्धन लोगों के प्रति असीम ममता थी । अनाथ तथा विकलांग बच्चों के जीवन को प्रकाशवान करने के लिये इन्होंने अपनी युवावस्था से जीवन के अंतिम क्षणों तक प्रयास किया। सन् 1997 सितंबर में ये परलोकवासिनी हो गई। भारत रत्न से सम्मानित 'मदर टेरेसा' को 'संत की पदवी' (Sount hood) पोन जॉन पॉल द्वितीय ने प्रदान की । सन् 2003 में रोम के एक समारोह में उन्हें 'धन्य' घोषित (Beatification) किया गया। मदर टेरेसा का असली नाम 'एग्नेस बोहाझिउ' था, किंतु पूर्व वर्णित 16वीं शताब्दी की 'संत टेरेसा' के नाम अपना नाम पर उन्होंने 'टेरेसा' रखा। 2 1.8.12 सेंट मेरी ईसाइयों द्वारा रचित ग्रन्थों में सैंकड़ों अपरिग्रही मुसलमान फकीरों के विचरण के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं। उनमें अलकासिम गिलानी और सरमद शहीद विशेष उल्लेखनीय हैं, उसके हजारों शिष्य थे। इनमें एक सेन्ट मेरी (St. Mary of Egypt) नामक साध्वी भी थी। यह मिश्रदेश की सुन्दर स्त्री थी, किंतु यह वस्त्र त्याग कर नग्न वेष में परिभ्रमण करती थी तथा अध्यात्मवाद का प्रचार करती थी। डॉ. देवेन्द्र कुमार शास्त्री ने सेन्ट मेरी को 'जैन आर्यिका वेष' में ईसाई महिला कहकर वर्णित किया है | 3 1.9 इस्लाम धर्म का नारियों के प्रति दृष्टिकोण इस्लाम धर्म में स्त्रियों के संन्यास की अवधारणा प्रायः अनुपस्थित है, वे स्त्री को केवल एक भोग्या के रूप में ही देखते हैं तथापि इस्लाम धर्म में भी कुछ स्त्री-फकीरों के उल्लेख मिलते हैं। 82. साहनी एवं सिंह, साहनी सर्वोत्तम हिंदी निबंध, पृ. 7, साहनी ब्रदर्स, अस्पताल रोड आगरा, 2003 ई. 83. शर्मा ठाकुर प्रसाद, 'ह्येनसांग का भारत भ्रमण' अनेकान्त, वर्ष 33 किरण 4 ई. 1925, पृ. 37 Jain Education International 21 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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