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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ अध्ययन संपूर्ण" लिखकर आर्या जीऊजी की शिष्या आर्या समताजी को दिया। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 6.7.199 आर्या सुखाजी (सं. 1940 ) श्री विनेमल ऋषिजी द्वारा सं. 1940 चैत्र शु. 5 को जोधपुर में लिखी 'श्री रामचन्द्रजी की लावणी' आर्या सुखाजी को वाचनार्थ दी। यह प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 6.7.200 आर्या रूपदेवीजी (सं. 1943 ) सं. 1943 आसाढ़ कृ. 2 को 'सद्गुरू गुण वर्णन' श्री सलखणीजी की शिष्या रूपदेवीजी के पठनार्थ हैवदपुर पट्टी नगर में लिखने का उल्लेख है। आचार्य सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में यह प्रति है। 6.7.201 आर्या राजां (सं. 1942 ) सं. 1942 वैशाख मास शुक्रवार को प्रतिलिपि किया गया 'दशाश्रुतस्कन्ध' की प्रति में कर्त्ता के रूप में आर्या गोरांजी की शिष्या चम्पाजी उनकी शिष्या राजा ने लिखा, ऐसा उल्लेख है। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 6.7.202 आर्या गुमानाजी (सं. 1945 ) प्राच्य विद्यापीठ शाजापुर भंडार (सं. 74 ) में उपलब्ध 'दशवैकालिक सूत्र' की प्रतिलिपि साध्वी गुमानाजी घीसाजी द्वारा सं. 1945 में लिखी गई, ऐसा उल्लेख है। एक अन्य 'समवायांग सूत्र' की प्रतिलिप जैसलमेर में हीरसुन्दर मुनि द्वारा की गई प्रति के अंत में उल्लेख है कि यह प्रति बाद में गुमानांजी घीसाजी के नेश्राय में रही । दोनों प्रति शाजापुर संग्रह में है। 6.7.203 आर्या विरदूजी (सं. 1946 ) ऋषि पूनमचंद ने जालंधर (पंजाब) में आर्या विरदूजी को मानतुंगाचार्य विरचित भक्तामर स्तोत्र ( श्लोक 44) सं. 1946 आसोज शु. 13 रविवार को लिखकर दिया। 6.7.204 आर्या सुखांजी (सं. 1950 ) सं. 1950 पोष शु. 13 रविवार को गच्छाधिपति श्री कस्तूरचंदजी म. के शिष्य ने 'देवद्वार' लिखकर आर्या सिरदारांजी की शिष्या सुखांजी को विसलपुर ग्राम में दिया । 6.7.205 आर्या वुदाजी (सं. 1950 के लगभग ) आर्या राजाजी की शिष्या वुदाजी ने 'तीन काल की चौबीसी' की प्रतिलिपि की, यह सुशील मुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 6.7.206 आर्या गुमानांजी (सं. 1951) प्राच्य विद्यापीठ शाजापुर में 'दशवैकालिक सूत्र' की प्रति पर प्रतिलिपिकार के रूप में 'साध्वी गुमानांजी का उल्लेख है। यहां गुमानांजी के साथ घीसाजी का नाम नहीं है, अतः स्पष्ट प्रतीत नहीं होता कि यह अलग नाम है या एक ही। इस प्रति के प्रथम और अंतिम पृष्ठ पर सामकुंवरबाई द्वारा चित्रकारी भी की गई है। प्रति (म. प्र.) में लिखी गई। Jain Education International 717 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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