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6.7.145 आर्या रामजी की शिष्या (सं. 1889 )
ऋषि रायचन्दजी की 'मृगलेखा नी चौपाई' (रचना 1838 ) की प्रतिलिपि बलुंदा में सं. 1889 में रामुजी की शिष्या द्वारा की गई। 526
6.7.146 आर्या रायकंवरी (सं. 1890 )
पू. जयमलजी महाराज द्वारा रचित 'मल्लिचरित्र' ( रचना सं. 1824 सोजत, का. शु. 14 ) महासती रामकंवरजी की शिष्या पारांजी उनकी शिष्या रायकंवरजी ने सं. 1890 श्रावण कृ. 8 बुधवार को रूपनगर शहर में प्रतिलिपि की । यह प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है।
6.7.147 आर्या भागांजी (सं. 1892)
'सती सुभद्रा की चौपई' श्री राजाजी की शिष्या श्री पनाजी उनकी शिष्या भागां ने सं. 1892 वैशाख मास में सोमवार को किशनगढ़ में आत्मार्थ के लिये लिखी । प्रति आ. सुशील मुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 6.7.148 आर्या रामो (सं. 1892 )
सं. 1892 मार्गशीर्ष शु. 10 रविवार को आगरा में ऋषि यति जोतिरूप ने 'तैंतीस बोल का थोकड़ा' लिखकर आर्या रामो को दिया। प्रति आचार्य सुशील आश्रम नई दिल्ली में है।
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
6.7.149 आर्या चंदु (सं. 1894 )
आनंदघनजी रचित 'नेमजी की सज्झाय' की मेड़ता में प्रतिलिपि कर आर्या चंदुजी को वाचनार्थ दी 1527
6.7.150 आर्या चिमनाजी (सं. 1895 )
सं. 1895 मृगशिरशु. 3 मंगलवार को अजीमगंज में आर्या नंदूजी की शिष्या श्री चनणांजी, उनकी शिष्या चिमनाजी ने भागिरथी के तट पर उपाध्याय समयसुंदरजी रचित 'सीताराम प्रबंध चौपाई' (रचना सं. 1687) की प्रतिलिपि की। यह प्रति श्री मोहनलालजी सेंट्रल लायब्रेरी पांजरापोल गली, लालबाग मुंबई में मौजूद है | 128
6.7.151 आर्या जतनजी (सं. 1895)
श्री हसुजी की शिष्या जतनजी द्वारा सं. 1895 की प्रतिलिपि दशवैकालिक सूत्र 'आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में अपूर्ण स्थिति में है।
6.7.152 आर्या कुनणांजी (सं. 1895)
सं. 1895 ज्येष्ठ कृ. 14 की एक प्रति जिसमें अनेक विध मंत्र जप आदि लिखे हुए हैं; रतनांजी की शिष्या श्री लाभांजी उनकी शिष्या कुनणांजी की पांडुलिपि है। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है।
526. राज. हिं. ह. ग्रं. की सू. भाग 3, क्र. 1617, ग्रं. 11057
527. स्व. गुलाबचंद्र जैन, चांदनी चौंक, दिल्ली के संग्रह में
528.
जै.
गु. क. भाग 2, पृ. 348
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