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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ 6.7.137 आर्या सुखमनी (सं. 1876)
आर्या सुखमनी ने सं. 1876 थानेश्वर में कवि परमल्ल (दिगंबर) की कृति 'श्रीपाल चरित्र भाषा' (रचना सं. 1651, आगरा) की प्रतिलिपि की। उक्त प्रति बी. एल. इन्स्टी. दि. (परि. 6595) में श्रेष्ठ स्थिति में मौजुद है। श्वेताम्बर संप्रदाय की साध्वी के द्वारा दिगम्बर कृति की प्रतिलिपि करना उसके उदार दृष्टिकोण का परिचायक है।
6.7.138 आर्या जसुजी (सं. 1877)
आर्या जसुजी ने सं. 1877 में 'विजयचंद केवली चरित्र सस्तबक की गुजराती में पांडुलिपि की। प्रति बी. एल. इंस्टी. दि. (परि. 9906) में हैं।
6.7.139 आर्या नान्ही (सं. 1880)
इनके लिये श्री सुखजी मुनि ने सं. 1880 पोष शु. 14 गुरूवार को 'समवायांग सूत्र' संपूर्ण लिखकर झालरापाटन में प्रदान किया। प्रति सुशीलमुनि आश्रम, नई दिल्ली में है।
6.7.140 आर्या गुमानांजी (सं. 1882)
प्राच्य विद्यापीठ शाजापुर से प्राप्त सोमगणि रचित 'विक्रमादित्य चौपाई (सं. 1727) की प्रतिलिपि आर्या गुमानाजी द्वारा सं. 1882 में मंदसौर नगर में की गई।
6.7.141 आर्या जमुना (सं. 1884)
पंजाब की महासाध्वी आर्या जमुना ने सं. 1884 में हिसार में 'गजसुकुमाल चरित्र' रचा।25 6.7.142 आर्या उजलांजी (सं. 1886)
'चंदनमलयगिरि की चौपाई' आर्या रंभाजी की शिष्या श्री उजलांजी ने पाली में शुक्रवार सं. 1886 में लिपि की। प्रति आ. सुशील मुनि आश्रम नई दिल्ली में है।
6.7.143 साध्वी अमृताश्रीजी (सं. 1887) ___सं. 1887 में साध्वी अमृताजी ने राजस्थानी भाषा की कृति 'बासठ बोल की चर्चा' जोधपुर में प्रतिलिपि की। यह प्रति बी.एल. इन्स्टी . (परि. 987) में मौजुद है।
6.7.144 आर्या म्हाकुंवरजी (सं. 1888)
'जंबूचरित्र' की एक प्रति सुशील मुनि आश्रम नई दिल्ली में श्री चमनाजी की शिष्या सजांजी उनकी शिष्या कुशालांजी उनकी शिष्या म्हाकुंवरजी द्वारा किसनगढ़ में सं. 1888 वैशाख कृ. सोमवार के दिन लिखी गई प्राप्त होती है। 525. 'दुगड़' मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म, पृ. 390
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