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________________ जैन श्रमणियों का बहद इतिहास 6.7.130 आर्या फत्ताजी (सं. 1870-72) आपने कई सूत्रों की प्रतिलिपि कर श्रुतरक्षा का महद् कार्य किया। आ. सुशीलमुनि आश्रम में आप द्वारा सं. 1870 का मालेरकोटला में लिखित निरयावलिका सूत्र, सं. 1872 आश्विन शु. 6 का मालेरकोटला में लिखित संपूर्ण ठाणांगसूत्र (परि. 178), एवं राजप्रश्नीय सूत्र, (परि. 90/176) संग्रहित है। पू. जयमलजी रचित 'साधवंदना' भी मालेरकोटला में प्रतिलिपि कर मनभरीजी को प्रदान की. ऐसा उल्लेख है। यह प्रति स्व. गुलाबचंदजी जैन, चीराखाना दिल्ली के संग्रह में है। आप आर्या केसरजी की शिष्या थीं। 6.7.131 आर्या ज्ञानीजी (सं. 1873) महासती खेमांजी की शिष्या श्री बीनाजी उनकी शिष्या ज्ञानीजी का सीढोरा (पंजाब) में सं. 1873 का प्रतिलिपि किया गया चूलिका सहित दशवैकालिक सूत्र आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है। खेमांजी वीनांजी की कई शिष्याओं ने शास्त्रों की प्रतिलिपियां करके श्रुतसंरक्षण में अपना अमूल्य योगदान दिया। 6.7.132 आर्या दीपाजी (सं. 1873) ऋषि लालचंदजी रचित 'कक्का बत्तीसी' में प्रतिलिपिकर्ता के रूप में आर्या दीपां का उल्लेख है। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 6.7.133 आर्या सुखमनी (सं. 1874) श्री प्रज्ञापना सूत्र सं. 1874 में अंबहटानगर में आर्या भागां की शिष्या आर्या सुखमनी ने लिपि किया। यह प्रति बी. एल. इन्स्टी. (परि. 1556) में मौजुद है। 6.7.134 आर्या पनीजी (सं. 1874-88) आप आर्या चमनाजी की शिष्या आर्या राजाजी की शिष्या थी। आपके कई सूत्र एवं रास आ. सुशीलमुनि आश्रम में हैं। आपने सं. 1874 चैत्र मास में किशनगढ़ में 'नन्दीसूत्र', सं. 1879 में फतेगढ़ में 'दशवैकालिक सूत्र' संपूर्ण, सं. 1880 माघ शु. 8 रविवार को 'अंजनासती रास', सं. 1882 में फतेगढ़ में 'उत्तराध्ययन सूत्र', सं. 1888 आसाढ़ शु. 13 गुरूवार को किशनगढ़ में 'मयणरेहा कथा संबंध' लिपिकृत कर पूर्ण किया। आपकी लिपी भी सुंदर है। 6.7.135 आर्या ज्ञानीजी (सं. 1874) श्री केसराज की कृति 'राम यशोरसायन की ढाल' सं. 1874 कार्तिक कृ. 3 सोमवार विक्रमपुर में आर्या ज्ञानीजी द्वारा प्रतिलिपि करने का उल्लेख है। यह प्रति सुशीलमुनि आश्रम नई दि. में है, पत्र एक दूसरे से चिपके हुए हैं। 6.7.136 आर्या गुमानाजी (सं. 1875) 'नमिपवज्जा' की प्रतिलिपि श्री पृथ्वीराज स्वामी ने सं. 1875 पोष शु. 14 को करके गुमानाजी को पठनार्थ दी। यह प्रति सुशील मुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 708 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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