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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
6.7.113 आर्या लछमांजी (सं. 1854)
महासती रतन कंवरजी की शिष्या लछमांजी ने सं. 1854 आश्विन कृ. 2 को 'चार प्रत्येक बुद्ध की चउपई' रची। इसकी पत्र सं. 30 एवं सर्व श्लोक संख्या 863 है। यह हस्तलिखित प्रति हमारे संग्रह में है। पीछे जिन लछमांजी का उल्लेख हुआ है, संभव है ये ही लछमाजी हों।
6.7.114 आर्या वसनाजी (सं. 1854)
सं. 1854 में लिखित 'श्री चन्द्रगुप्त राजा के 16 स्वप्न' में प्रतिलिपिकर्ता आर्या सीताजी की शिष्या वसनां' का उल्लेख है। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम में है।
6.7.115 आर्या नथोजी (सं. 1857)
सं. 1857 चैत्र कृ. 14 शुक्रवार को 'दशवैकालिक सूत्र' की प्रतिलिपि आर्या खेमांजी की शिष्या वीनांजी की शिष्या नथोजी ने मालेरकोटला में की। प्रति आ. सुशील मुनि आश्रम नई दिल्ली में है।
6.7.116 आर्या वकत्तु (सं. 1858)
सं. 1858 कार्तिक शु. 13 बुधवार को श्री सहजराम ने 'नमिपवज्जा' की प्रतिलिपि कर श्री मयाजी की शिष्या आर्या वकत्तु को पठनार्थ दी। यह प्रति आचार्य सुशील मुनि आश्रम दिल्ली में है। 6.7.117 आर्या सुखांजी (सं. 1860)
इन्होंने सं. 1860 में 'गजसुकुमाल सज्झाय' (सं. 1858 में मुनि चौथमल रचित) प्रतिलिपि की।523 6.7.118 आर्या दुर्गीजी (सं. 1861)
___ श्री रूपचंदजी महाराज का स्तवन' रूपदेवीजी की शिष्या एवं भागवंतीजी की गुरूबहन के द्वारा सं. 1861 में लिखने का उल्लेख है। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है।
6.7.119 आर्या लाजवंतीजी (सं. 1861)
श्री बख्शीरामजी महाराज की स्तुति 'आर्या सुलषणीजी की शिष्या रूपदेवीजी उनकी शिष्या भागवंती व उनकी शिष्या लाजवंती द्वारा लिखी गई प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है।
6.7.120 आर्या चनणांजी (सं. 1862)
श्री नयविजय कृत 'श्रीपाल चरित्र (सं. 1730) की सं. 1862 कोटा में प्रतिलिपि की गई प्रति अमरूजी की शिष्या चमनजी उनकी शिष्या लाभुजी व उनकी शिष्या चनणांजी की है। आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में यह प्रति है।
523. रा. हिं, हस्त. ग्रं. सू., भाग 8, क्र. 895, ग्रं. 4231
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