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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ 6.7.106 आर्या नथोजी (सं. 1845)
सं. 1845 में मेड़ता स्थल पर आर्या नथोजी द्वारा 'आठ कर्म प्रकृति विचार' की पांडुलिपि की गई। उक्त प्रति बी. एल. इन्स्टी. दि. (परि. 9510) में श्रेष्ठ स्थिति में मौजुद है।
6.7.107 आर्या रामकंवर (सं. 1849)
आप द्वारा प्रतिलिपि किये गये दो शास्त्र आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है (1) अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र एवं (2) सं. 1849 आश्विन शु. पूर्णमासी को फरूखनगर में लिपि किया गया समवायांगसूत्र संपूर्ण। उक्त दोनों प्रति की कर्ता रामकंवरजी, आर्या केसरजी की शिष्या थीं।
6.7.108 आर्या लक्षमांजी (सं. 1850)
__ ये महासती दयाजी की शिष्या रतनकुंवरजी की शिष्या थीं। दिल्ली के सुश्रावक श्रीमान् दलपतरायजी ने तुर्की भाषा में आर्या लक्षमांजी कुछ तात्त्विक प्रश्न भेजे, लक्षमांजी ने हिंदी-गुजराती भाषा में संक्षेप एवं सारपूर्ण जो समाधान लिखकर दिये, उससे साध्वीजी की ज्ञान गुरूता, विद्वत्ता एवं सूक्ष्म विश्लेषण क्षमता का सहज अनुमान लगता है। कुल 180 प्रश्न एवं उत्तर 30 पन्नों में निबद्ध है। इसकी हस्तलिखित प्रति बी. एल. इन्स्टी. दिल्ली (परि. 4369) है। अक्षर भी सुंदर हैं। प्रति सं. 1850 की है।
6.7.109 आर्या फताजी (सं. 1852)
आर्या फताजी ने सं. 1852 में 'औपपातिक सूत्र सस्तबक' की प्रतिलिपि की। इसकी प्रति बी. एल. इन्स्टी. दि. (परि. 1482) में है। 'श्री नवकार बालावबोध' की प्रतिलिपि के रूप में आर्या फताजी की एक प्रति आचार्य सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 6.7.110 आर्या संभूजी (सं. 1854)
आर्या अनूजी की शिष्या आर्या संभूजी ने विक्रमपुर में सं. 1854 में 'नंदीसूत्र सस्तबक' की प्रतिलिपि की। प्रति बी. एल. इंस्टी. दि. (परि. 2575) में है।
6.7.111 आर्या किसनांजी (सं. 1853)
सं. 1853 को लखनऊ में लिपि की गई गुजराती भाषा में 'दण्डक छब्बीस द्वार' की पांडुलिपि बी. एल. इन्स्टी. दिल्ली (परि. 9464) में संग्रहित है।
6.7.112 आर्या जमनाजी (सं. 1854)
__प्राच्य विद्यापीठ शाजापुर से प्राप्त सं. 1854 चैत्र कृ. 11 की रचना 'कमलावती की सज्झाय' में रचनाकार' आर्या जमनाजी का नाम है, यह रचना प्रतापगढ़ में की गई है। शाजापुर में ही 'प्रज्ञापनासूत्र' मूलपाठ के अंतिम कवर पेज पर भी जमनाजी के नाम का उल्लेख है।
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