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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
6.7.98 आर्या हीराजी (सं. 1836)
श्री गुणसागर कृत 'सेठ सुदर्शन चरित्र' सं. 1836 कार्तिक शु. 2 मंगलवार को आर्या मगडुजी की शिष्या आर्या हीरा द्वारा रूणजा ग्राम में प्रतिलिपि किया गया। यह प्रति गुमानाजी, घीसाजी के नेश्राय की थी। प्रति आ. सुशील मुनि आश्रम में है। 6.7.99 आर्या चनांजी (सं. 1838)
ये आर्या फुलाजी की शिष्या थी। इन्होंने खरतरगच्छीय क्षेमहर्ष की 'चंदन मलयागिरी चौपाई' कोटा के रामपुरा में प्रतिलिपि की। प्रति अनंतनाथजी नुं मंदिर मांडवी मुंबई में है।2। सं. 1838 में आर्या फुलाजी की शिष्या चनांजी की चन्द्रलेहा चौपई' महावीर जैन लायब्रेरी चांदनीचौक दिल्ली (क्र. 118) में संग्रहित है। 6.7.100 आर्या चनांजी (सं. 1838)
'मार्गणा द्वार के बासठ बोल' की सं. 1838 साहेपुर की प्रति में चनांजी का प्रतिलिपिकर्ता के रूप में उल्लेख है। प्रति बी. एल. इन्स्टीट्यूट दि. (परि. 9553) में हैं। 6.7.101 आर्या सोनजी, चनांजी (सं. 1840)
प्राच्य विद्यापीठ शाजापुर भंडार के सं. 1840 कार्तिक शु. 13 की प्रति 'कर्मों की सज्झाय' में प्रतिलिपिकर्ता आर्या सोनजी और उनकी शिष्या चनांजी का उल्लेख हैं 6.7.102 आर्या नांदो (सं. 184......)
दशवैकालिक सूत्र की एक प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में प्रतिलिपिक/ आर्या लिछमीजी की शिष्या 'नांदो आर्या' का नाम हैं लिपि अति सुंदर हैं। 6.7.103 आर्या नगांजी (सं. 1841)
आचार्य जयमलजी रचित 'जम्बूस्वामीरास' की प्रतिलिपि सं. 1841 में प्रतिलिपिकी साध्वी नगांजी ने कुचामण में यह रास लिखा, ऐसा उल्लेख हैं। प्रति पूर्ण है किंतु दीमक भक्षित है। 22 6.7.104 आर्या लाला (सं. 1842)
'आवश्यक सूत्र टब्बार्थ सह' सं. 1842 वैशाख शु. 7 रविवार में प्रतिलिपिकार आर्या हीराजी, चनाजी की। शिष्या लाला/मालाजी का नाम है। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 6.7.105 आर्या वखतांजी (सं. 1843)
आर्या वखतांजी द्वारा सं. 1843 ज्येष्ठ शु. पूर्णमासी रविवार के दिन 'चन्दन मलयागिरि चउपई' की प्रतिलिपि अकबराबाद में करने का उल्लेख है। प्रति सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 521. जै. गु. क. भाग 4, पृ. 144 522. राज. हिं. ह. ग्रं. सू., भाग 8, क्र. 848 ग्र. 5242
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