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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ
प्रतिलिपि की। इसकी प्रति बी. एल. इन्स्टीट्यूट दिल्ली (परि. 1234 ) में है। इन्होंने सं. 1829 श्रावण शु. 2 को ठाणांगसूत्र की प्रतिलिप मालेरकोटला में की। ये पू. मलूकचंदजी की शिष्यां थीं। 17
6.7.92 आर्या रतना (सं. 1830 )
ब्रह्मरायमल द्वारा रचित सुदर्शनरास (सं. 1629) की सं. 1830 की प्रतिलिपिकर्त्ता में आर्या रत्नां का नाम
है 1518
6.7.93 साध्वी खुशालांजी (सं. 1831 )
श्री रनवल्लभ रचित 'चार मंगल रो चौढालियो ' संवत् 1831 जयपुर में महासती खुशालाजी ने प्रतिलिपि किया। 519
6.7.94 आर्या फताजी (सं. 1832 )
आपने सं. 1832 में 'गौतम पृच्छा बालावबोध सह प्राकृत भाषा का आचारोपदेशक ग्रंथ की प्रतिलिपि की । प्रति बी. एल. इन्स्टीट्यूट दिल्ली (परि. 3343) में है।
6.7.95 आर्या फत्तु (सं. 1833 )
'सिंहासन बत्तीसी री वार्ता' की सं. 1833 की प्रतिलिपि में आर्या केसरजी चेनांजी की शिष्या फत्तु का नामोल्लेख है। प्रति खंडप में लिखी गई 1520
6.7.96 आर्या वसनाजी (सं. 1834
मरूगुर्जर भाषा का दशवैकालिक सूत्र सस्तबक सं. 1834 ककोड़ नगर में सीताजी की शिष्या आर्या वसनाजी ने लिपि किया। यह प्रति बी. एल. इन्स्टीट्यूट दिल्ली में (परि. 2024 ) है। वसनांजी ने ही संवत् 1852 में जिहानाबाद में औपपातिक सूत्र सस्तबक की भी प्रतिलिपि की। इसकी प्रति दिल्ली (परि. 1489) में पूर्वोक्त स्थल पर है।
6.7.97 आर्या लच्छां (सं. 1835 )
श्री म्हाकंवरजी की शिष्या लच्छां आर्या ने सं. 1835 कार्तिक शु. 2 गुरूवार को चौरासीका गांव में 'दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र' की प्रतिलिपि की । यह प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली (परि. 90 / 432 ) में संग्रहित है। म्हाकंवरजी का नथमलजी की गुरूबहन के रूप में उल्लेख किया है।
517. 'दुगड़' मध्य एशिया व पंजाब में जैनधर्म, पृ. 392
518. रा. हिं. ह. ग्रं. सू., भाग 8, क्र 662, ग्र. 5250 519. रा. हिं. ह. ग्रं. सू. भाग 5 क्र. 1080, ग्रं. 5784 520. राज. हिं. ह. ग्रं. सू. भाग 3, क्र. 2103 ग्रं. 11546
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