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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 6.7.84 आर्या लाभांजी (सं. 1825)
___ सं. 1825 मिगसर सुदी 13 बुधवार के दिन रजाजी उदांजी की शिष्या अजुबांजी, इनकी शिष्या लाभांजी ने आनन्दपुर ग्राम में 'नंदीसूत्र टब्बा सह' लिखा। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 6.7.85 आर्या तागां (सं. 182....)
सं. 182.... आश्विन शु. पूर्णमासी को आवश्यक सूत्र की प्रतिलिपि की। साध्वीजी के अक्षर सुन्दर हैं। प्रति आ. सुशील मुनि आश्रम नई दिल्ली (परि. 90/554) में है।
6.7.86 आर्या सुजाणा (सं. 1826)
सं. 1826 बीकानेर में लिखी गई 'श्रावक विचार, बोल गुणठाणा' आदि की लिपिकर्ता में आर्या सुजाणाजी का नाम है।515
6.7.87 आर्या बालकुंवरिका (सं. 1827)
आपने 'सूत्रकृतांग सूत्र सस्तबक' की प्रतिलिपि संवत् 1827 में की। यह प्रति बी. एल. इंस्टीट्यूट दिल्ली (परि. 759) में है। 6.7.88 आर्या रामकुंवर (सं. 1827)
आपने सं. 1827 में शाहजहानाबाद में 'दशवैकालिक चूलिका सस्तबक' की प्रतिलिपि की प्रति बी. एल. इंस्टीट्यूट दिल्ली (परि. 2010) में है।
6.7.89 आर्या रतना (सं. 1828)
सं. 1828 ककोड़ स्थान पर आर्या चना की शिष्या आया रतना का 'दशाश्रुतस्कंध सूत्र सस्तबक' मरू गुर्जर भाषा का प्रतिलिपि कृत मिलता है। प्रति बी. एल. इन्स्टीट्यूट दिल्ली (परि. 1672) में है।
6.7.90 साध्वी सरूपा (सं. 1827-47 के मध्य)
___ मुनि जयमलजी ने सं. 1827 से 1847 के मध्य 'हीयाली संग्रह' का गुटका रचा, उसकी साध्वी सरूपा से प्रतिलिपि कराई।516
6.7.91 आर्या वसना (सं. 1828)
सं. 1828 को सुनाम नगर में आर्या वख्ताजी की शिष्या आर्या वसनांजी ने 'समवायांग सूत्र सस्तबक' की
515. राज. 'हिं. ह. ग्रं. सू., भाग 3, क्र. 1979 ग्रं. 12413 (1-2) 516. राज. हिं. ह. ग्रं. सू. भाग 3, क्रमांक 2342, ग्रं. 12320 (54)
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