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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ
6.7.76 आर्या हीराजी गुलाबांजी (सं. 1810 )
सं. 1810 की आचारांग सूत्र की प्रतिलिपि में उल्लेख है कि यह सूत्र आर्या गुलाबांजी के वाचनार्थ हीराजी ने तेले-तेले की तपस्या के साथ लिखा । हीरांजी आर्या नान्हीजी की शिष्या थीं। लिपि अति स्वच्छ व सुंदर है। प्रति आ. सुशील मुनि आश्रम नई दिल्ली में है।
6.7.77 आर्या चंदा (सं. 1817 )
सं. 1817 भाद्रपद शु. 5 को आकोला में आर्या लाछांजी की शिष्या आर्या चंदाजी ने 'श्री बृहत्कल्पसूत्र' लिखकर पूर्ण किया। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम में है।
6.7.78 आर्या वखतां (सं. 1819 )
आप आर्या फुलांजी की शिष्या थी, आप द्वारा मरूगुर्जर भाषा में लिखा हुआ 'दशवैकालिक सूत्र सस्तबक' बी. एल. इन्स्टीट्यूट दिल्ली (परि. 2050 ) में है।
6.7.79 आर्या चैनां (सं. 1819 )
तपागच्छीय श्री मानसागरजी की रचित 'कान्ह कठियारा नो रास (सं. 1746 ) श्री मटुजी की शिष्या आर्या चैनां द्वारा सं. 1819 में निम्बाज (राज.) का लिखा हुआ मिलता है। प्रति मुंबई नी रोयल एशियाटिक सोसायटी में है | 12 6.7.80 आर्या रत्नां (सं. 1819 )
आर्या खुसालांजी की शिष्या आर्या रत्ना ने सं. 1819 में सेवक कृत 'नवमी स्तवन' की प्रतिलिपि अहिपुर में की। 13
6.7.81 आर्या माहु (सं. 1821 )
ये नागोरी लुकागच्छ की साध्वी थी। अकबरा में सं. 1821 मृगशिर कृ. 11 सोमवार को लिखी ऋषि थिरपाल की 'उपदेशसित्तरि' की हस्तप्रति इनके वाचनार्थ लिखी गई थी, ऐसा उल्लेख है। 514
6.7.82 आर्या सिंदुरो (सं. 1822 )
आर्या केसरजी की शिष्या दीपांजी की शिष्या आर्या सिंदुरो ने 'दशवैकालिक सूत्र' की प्रतिलिपि सं. 1822 गुरूवार को की। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है।
6.7.83 आर्या फत्तु (सं. 1823 )
आर्या हेमाजी की शिष्या फत्तु ने मेड़ता में दशाश्रुतस्कन्ध की प्रतिलिपि सं. 1823 कार्तिक कृ. 13 शुक्रवार को की। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है।
512. जै. गु. क. भाग 4, पृ. 334
513, राज. हिं. ह. ग्रं. भाग 3, क्र. 917, ग्रं. 12320 (46)
514. जै. गु. क. भाग 3, पृ. 220
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