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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 6.7.52 आर्या भागां (सं. 1792) सं. 1792 कार्तिक कृ. 3 की 'अनुत्तरोपपातिक दशा' सूत्र की प्रति में आर्या भागां और अजबां का प्रतिलिपिकर्ता के रूप में उल्लेख है। प्रति आ. सुशील आश्रम दिल्ली में है। 6.7.53 आर्या श्यामा (सं. 1794) सं. 1794 वैशाख शु. 12 शुक्रवार को श्री जीवराजजी के शिष्य द्वारा लिखी 'सूत्रकृतांग सूत्र प्रथम श्रुतस्कन्ध बालावबोध विवरण सह' की पाण्डुलिपी कर्म निर्जरार्थ आर्या स्यामा को प्रदान करने का उल्लेख है। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में मौजूद है। 6.7.54 आर्या पमी (सं. 1797) इन्होंने सं. 1797 में 'प्रश्नव्याकरण सूत्र' की प्रतिलिपि की। प्रति के अंत में इनकी गुरूणी परम्परा इस प्रकार दी है। आर्या नान्ही की शिष्या आनन्दाजी, इनकी शिष्या आर्या हरकुंवरजी उनकी शिष्या आर्या पमी। यह प्रति विद्यापीठ शाजापुर में उपलब्ध है। 6.7.55 आर्या रत्ना (सं. 1797) रंगकलश रचित 'पंचमी स्तवन' की लिपिकर्ता साध्वी खुशालाजी की शिष्या रत्नाजी व अनोपजी का नामोल्लेख है। लिपि स्थान 'नागोर' दिया है।09 6.7.56 आर्या कुसालांजी (सं. 1797) सं. 1797 को नागोर में आर्या कुसलांजी ने मरूगुर्जर भाषा ' राजप्रश्नीय सूत्र सस्तबक' लिखा। इसकी प्रति बी. एल. इंस्टीट्यूट, दिल्ली (परि. 1507) में है। 6.7.57 आर्या मीमी (18वीं सदी) इन्होंने वीरभद्रगणिकृत 'चतुः शरण प्रकीर्णक सार्थ' मरूगुर्जर भाषा में लिखा। इसकी प्रति बी. एल. इंस्टीट्यूट दिल्ली (परि. 2731) में है। 6.7.58 आर्या हीरा (18वीं सदी) गुणसागरकृत 'कयवन्नारास' की पाण्डुलिपि में कर्ता के रूप में आर्या हीराजी का नाम है।510 'अंजना सुंदरी चौपाई' में भी 18वीं सदी की लिपिक/ आर्या हीरा का नामोल्लेख है। यह प्रति बीकानेर में लिखी गई। 509. राज. हिं. ग्रं. सू. भाग 3, क्र. 1020, ग्र. 12320 (45) 510. राज. हिं. ह. ग्रं. सू., भाग 1, क्र. 291, ग्रं. 4049 511. वही, क्र. 22, ग्रं. 7043 698 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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