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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ 6.7.46 आर्या केशर (सं. 1776) सं. 1776 में 'व्यवहार सूत्र सस्तबक' मरूगुर्जर भाषा में आर्या रत्नाजी की शिष्या आर्या केशरजी ने लिखा। इसकी प्रति बी. एल. इन्स्टीट्यूट दिल्ली (परि. 1648) में है। 6.7.47 आर्या मयाजी (सं. 1781) तपागच्छीय श्री गजविजय रचित 'मुनिपतिरास' (रचना सं. 1781) की प्रतिलिपि आसाढ़ शु. 11 रविवार, सं. 1781 में बालाजी की शिष्या मयाजी ने की। यह प्रति पुण्यविजयजी संग्रह, एल. डी. भारतीय संस्कृत विद्यामंदिर अमदाबाद में है।305 6.7.48 आर्या स्यामबाई (सं. 1782) गुरू प्रेमराज रचित 'वैदर्भी चौपाई' (रचना सं. 1724 से पूर्व) की प्रतिलिपिकी में आर्या स्यामबाई, साध्वी गागबाई, सखरबाई, रहीबाई का नाम है, इन्होंने सं. 1782 में कोटड़ी ग्राम में फूलबाई के पठनार्थ लिखी। संभव है, यह रहीबाई की गुरूणी-परंपरा हो, या संघ की ज्येष्ठ साध्वियाँ हों, प्रतिलिपिकी रहीबाई हों। मूल प्रति देखने से स्पष्ट हो सकता है। यह प्रति मुक्तिकमल जैन मोहनज्ञान मंदिर, बड़ोदरा (नं. 2335) में संग्रहित है।506 6.7.49 आर्या केशरजी (सं. 1782) श्री विनोदीलाल रचित 'राजुल पच्चीसी' साध्वी केशरजी के पठनार्थ पं. प्रवर मनोहर ने 1782 मृगशिर कृ. 6 को लिखी। प्रति अभय जैन ग्रंथालय बीकानेर में है।07 6.7.50 आर्या कंकूजी, नंदूजी (सं. 1783) प्राच्य विद्यापीठ शाजापुर भंडार में उपलब्ध सं. 1783 की 'उपासकदशांग सूत्र' की प्रति में कंकू आर्या और नंदू आर्या की नेश्राय लिखी गई है। डॉ. सागरमलजी जैन के अनुसार इन दोनों आर्याओं का काल तुलसी ऋषिजी के पश्चात् और मनसुखऋषिजी के पूर्व का होना चाहिये। 6.7.51 आर्या रतनांजी (सं. 1792) आर्या रतनांजी के लिये सं. 1792 में ऋषि हरचंद ने 'पारणे वडोडा वीर को' स्तवन की प्रतिलिपि की। संभवतः इन्हीं के लिये 'नववाड़ की सज्झाय' की प्रतिलिपि की गई है। इसमें भी 'आर्या रतनांजी पठनार्थ लिखा है। 'नेम राजमती की सज्झाय' में भी यही नामोल्लेख है। सदी 18वीं है।508 505. जै. गु. क. भाग 5, पृ. 304 506. जै. गु. क. भाग 4, पृ. 328 507. राज. हिंदी के हस्तलिखित ग्रंथों की खोज, भाग 4, अगरचंद नाहटा 508. रा. हिं. ह. ग्रं. की सु. भाग 3, क्रमांक 1288, ग्रंथांक 12320 (30), क्र. 922, ग्रंथांक 12320 (1),क्र. 1001, ग्रंथांक 12320 (3) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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