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जैन श्रमणियों का बहद इतिहास
कार्तिक कृ. 11 मंगलवार को सामड़िया ग्राम में 'उत्तराध्ययन सूत्र' छत्तीस अध्ययन लिखकर आर्या पूरां को पठनार्थ दिया।503
6.7.39 आर्या कुसुंबा (सं. 1762)
ये ऋषि बसतांजी अनगार की शिष्या थीं, इन्होंने सं. 1762 वैशाख शु. पूर्णमासी मंगलवार के दिन 'सूत्रकृतांग सूत्र' (द्वि. श्रु.) की प्रतिलिपि की। सूत्र के साथ इसमें स्पष्टार्थ भी हैं। प्रति आचार्य सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 6.7.40 आर्या उदा (सं. 1765)
सं. 1765 आश्विन कृ. 12 मंगलवार को लिखी विपाकसूत्र में प्रतिलिपिकर्ता के रूप में आर्या नान्दीजी की शिष्या आर्या उदा का उल्लेख है। प्रति सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 6.7.41 आर्या केसरजी (सं. 1766)
सं. 1766 आसोज शुक्लपक्ष में श्री सुर्यगडांग सूत्र की प्रति आर्या केसरजी की शिष्या ने लिखी। यह प्रति आ. सुशील मुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 6.7.42 आर्या हठीली (सं. 1769)
सं. 1769 में आर्या हठीली का नाम 'माऊ अग्रवाल गर्ग रचित 'दीतवार की कथा' में प्रतिलिपिकी के रूप . में है।504
6.7.43 आर्या सुवाजी (सं. 1769)
सं. 1769 कार्तिक शु. 10 रविवार को आर्या सुवाजी ने आर्या जीवोजी के लिये 'नन्दीसूत्र' की प्रतिलिपि की। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 6.7.44 आर्या वीरा (सं. 1770)
सं. 1770 में वजवाड़ा स्थान पर आपने 'अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र सस्तबक' लिखा। इसकी प्रति बी. एल. इन्स्टीट्यूट दिल्ली (परि. 2562) में है। आप आर्या अनूपांजी की शिष्या थीं।
6.7.45 आर्या केसर (सं. 1773)
सं. 1773 मृगशिर कृ. 4 मंगलवार सोवलना ग्राम में ऋषि धनजी ने आर्या केसरजी के पठनार्थ 'कल्पसूत्र टब्बा सह' लिखा। यह प्रति आचार्य सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है।
503. श्री प्रशस्ति संग्रह, पृ. 270 504. राज. हिं. ह. ग्रं. सू., भाग 8, क्र. 696, ग्रं. 4489
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