________________
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
महाप्रजापति को अपने संघ में भिक्षुणी बनने का अधिकार प्रदान करने एवं भिक्षुणी संघ की स्थापना के पश्चात् भी बुद्ध इस नारी-संघ को हृदय से स्वीकार नहीं कर पाये, अत्यन्त खेद- खिन्न होते हुए उन्होंने कहा- “आनन्द! यह भिक्षु संघ यदि सहस्र वर्ष टिकने वाला था तो अब पाँचसौ वर्ष से अधिक नहीं टिकेगा अर्थात् नारी दीक्षा से मेरे धर्म संघ की उम्र आधी ही शेष रह गई है।"
चूंकि, भिक्षुणी-संघ के निर्माण में आनन्द की मूल प्रेरणा रही थी अत: बौद्ध-संघ में इस विषय को लेकर आनन्द के प्रति आक्रोश की भावना झलकती है, यही कारण था कि बुद्ध निर्वाण के अनन्तर महाकाश्यप के तत्त्वावधान में जब प्रथम बौद्ध संगीति में त्रिपिटकों का संकलन हुआ, तब राजगृह में 499 भिक्षु इस सभा में एकत्र हुए। आनंद को इस सभा में प्रथम तो बुलाया ही नहीं, किंतु 500 अर्हत् भिक्षुओं में एक आनन्द ही ऐसे भिक्षु थे जो सूत्र के अधिकारी ज्ञाता थे; अत: भिक्षुओं के आग्रह से जब आनन्द को बुलाया गया तो स्त्री-दीक्षा के प्रेरक बनने, स्त्रियों को भगवान बुद्ध के शरीर का अभिवादन करने की अनुमति प्रदान करने, तथा स्त्रियों को महत्व देने के कारण उन्हें प्रायश्चित् करवाया।
1.7.2 बौद्ध संघ में स्त्री दीक्षा न देने का कारण
बुद्ध के भिक्षु संघ का उद्देश्य ऐसे जन सेवक तैयार करना था जो स्वंय पवित्र जीवन जीकर समाज की बुराइयाँ दूर करें। उनकी मान्यता थी, कि अर्हत्पद तो स्त्री हो या पुरूष, कोई घर में रहकर भी प्राप्त कर सकता है, किंतु गृहस्थी में समाज को ऐसे साधु-सेवक नहीं मिल सकते जो निष्परिग्रही हों, निर्भय हों, नि:स्वार्थ हों। राजा-रंक को समान दृष्टि से देखते हो। इसीलिये धर्म-संघ बनाने की आवश्यकता महसूस हुई। यह संघ या तो पुरूषों-पुरूषों का हो या स्त्रियों-स्त्रियों का। पुरूषों का संघ बनाना उन्होंने अधिक उपयुक्त इसलिये समझा कि बुद्ध स्वयं पुरूष होने के कारण उसका सञ्चालन अच्छी तरह कर सकते थे। भिक्षुणी संघ वे इसलिये नहीं बनाना चाहते थे कि दोनों संघों के कारण यहाँ भी वही संसार बन जायेगा, जिसे छोड़कर कोई भिक्षु बनता है, बल्कि घर में तो मनुष्य लोगों से निर्भय होकर दाम्पत्य बिता सकता है, भिक्षु संघ में तो दाम्पत्य को जगह नहीं है, इसलिये यह आकर्षण अन्तर्गामी बन जायेगा और धीरे-धीरे संघ को खोखला कर देगा। बुद्ध की यह शंका किसी हद्द तक ठीक ही निकली, जब उनके ही समक्ष उनके भिक्षु, भिक्षुणियों के निवास
लगे कोई चर्चा के बहाने कोई उन्हें परेशान करने कोई पानी लाने तो कोई भिक्षणी से उपदेश सुनने के बहाने भिक्षुणी-आवास में जाने लगे। बुद्ध इस पर चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं, कि “मैंने यद्यपि भिक्षुणियों को दीक्षा से पूर्व आठ गुरूधर्म बना दिये, किंतु क्या इन नियमों से दोनों का आकर्षण कम हो पायेगा? बहाना सबसे सुलभ वस्तु है। मैं सौ नियम बनाऊँगा तो एकसौ एकवां बहाना निकल आयेगा। नियम तो रास्ता बताते हैं, चला नहीं सकते। जिन भिक्षुओं में संयम नहीं है वे नियमों में कैद नहीं हो सकते।"63
बुद्ध का विचार था कि भिक्षुणियों से संघ की शीघ्र अवनति होगी। धीरे-धीरे संघ पापाचार का घर बन जाएगा। संघ की संख्या दूनी हो जाएगी पर संघ का जीवन आधा ही रह जाएगा और पवित्रता तो नामशेष ही समझो। बुद्ध 61. चुल्लवग्ग, भिक्खुणी स्कन्धक 10/1/4, पृ. 376 62. वही, आनन्दस्स दुक्कटानि, 11/6, पृ. 410 63. स्वामी सत्यभक्त, बुद्ध हृदय, पृ. 60, सत्याश्रम वर्धा, जुलाई 1941 ई.
14
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org