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________________ पूर्व पीठिका की अनिच्छापूर्वक आनन्द के पुनः पुनः आग्रह से भिक्षुणी संघ बना, इसके लिये आनंद को अपने ही संघ से कइयों के वाग्बाणों का शिकार भी बनना पड़ा। उसे अदूरदृष्टा, वर्तमानदर्शी, नगदपुण्य का पुजारी, जल्दी प्रसन्न हो जाने वाला भावनाशील एवं परिणाम को न देखने वाला कहा गया। तथापि इतना तो कहना ही पड़ेगा, कि बौद्ध धर्म में स्त्रियों को प्रवेश आनन्द के कारण ही मिल पाया था, आनन्द ने इस विषय में जो क्रांति की, उससे बौद्ध नारी-समाज महिमामयी बना है, बौद्ध इतिहास में यह प्रसंग अविस्मरणीय रहेगा। बौद्ध भिक्षुणियों के लिये आनन्द सदैव आराध्य-पुरूष के रूप में आदरणीय रहेंगे। 1.7.3 कुछ प्रमुख बौद्ध भिक्षुणियाँ ___बौद्ध संघ में स्त्रियों को स्थान मिलने के पश्चात् बुद्ध की उदारता अप्रतिम रही। उन्होंने विवाहित, अविवाहित, निम्न या उच्चवर्ग, श्रेष्ठी या गणिका आदि किसी भी प्रकार का भेदभाव किये बिना सबके लिये अपने धर्म का द्वार खोल दिया था। उनकी इस उदार दृष्टि से अनेक नारियाँ जो विधवा या किसी सांसारिक कष्ट से पीड़ित होती अथवा किसी कारणवश अविवाहित रह जाती या उसके पति प्रव्रजित हो जाते, उन सब नारियों को निस्संकोच यहाँ शरण मिलने लगा था। सैंकड़ों सहस्रों नारियों को बुद्ध ने त्राण व संरक्षण प्रदान किया। इतना ही नहीं 'थेरी अपदान (सुत्तपिटक) में उनके उपदेशों का संकलन कर विश्व इतिहास में नारियों को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है। सुत्तपिटक के खुद्दनिकाय 'थेरीगाथाओं में लगभग 58 थेरियों की गाथाएँ एवं थेरी अपदान में 40 थेरियों का हृदय स्पर्शी उपदेश संकलित है।5 अंगुत्तरनिकाय में स्वयं बुद्ध ने अपने संघ की अग्रगण्य 13 थेरियों को नामोल्लेख एवं प्रशंसा युक्त वचनों द्वारा सम्मानित किया वे इस प्रकार हैं1.7.3.1 महाप्रजापति गौतमी : ये शाक्य देश में कपिलवस्तु के क्षत्रिय राजा शुद्धोदन की पत्नी थी, भगवान बुद्ध की क्षीरदायिका माता थी, बौद्ध संघ में नारी जाति को स्थान दिलाने के रूप में इतिहास में इनका नाम सदा-सदा अमर रहेगा। इन्हें भगवान बुद्ध ने "रक्तज्ञा भिक्षुणियों में अग्रगण्या" कहकर संबोधित किया है। 1.7.3.2 खेमा : ये मद्र देश सागल की राजकन्या एवं मगधराज बिम्बसार की पत्नी थी। इन्हें तथागत बुद्ध ने 'महाप्रज्ञाओं में अग्रगण्या' कहा है। 1.7.3.3 उत्पलवर्ण : ये कौशल देश में श्रावस्ती नगरी के श्रेष्ठीकुल में उत्पन्न हुई थीं, इन्हें 'ऋद्धिशालिनियों में अग्रगण्या' कहकर सम्मानित किया है। 1.7.3.4 पटाचारा : ये भी श्रावस्ती के श्रेष्ठी कुल की कन्या थी। तथागत बुद्ध ने इन्हें "विनयधराओं में अग्रगण्या' कहा है। 1.7.3.5 धम्मदिन्ना : राजगृह के विशाख श्रेष्ठी की पत्नी थी, इन्हें 'धर्मोपदेशिकाओं में अग्रगण्या' माना गया है। 64. सत्यभक्त, बुद्ध हृदय, पृ. 23 65. थेरी अपदान सुत्तपिटके, भाग 2 पृ. 181-293 संपादक-भिक्खु जगदीश कस्सप, 1959 ई. 66. अंगुत्तरनिकाय, धम्मपद अट्ठकथा 8/3 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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