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________________ पूर्व पीठिका उसके विस्तार के लिये अथक परिश्रम भी किया था" किंतु उन्होंने भिक्षुणी संघ की स्थापना धर्मतीर्थ प्रवर्तन के कुछ वर्षों बाद अनिच्छापूर्वक की थी। बुद्ध की मौसी महाप्रजापति गौतमी ने जब कपिलवस्तु के न्यग्रोधाराम में स्त्रियों को प्रव्रज्या देने का अनुरोध किया, तब प्रथम बार तो बुद्ध ने स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया। 58 किंतु गौतमी निराश नहीं हुई, उसने विचार किया कि संभवत: नारी को दुर्बल समझकर बुद्ध उन्हें अपने संघ में प्रवेश नहीं देते होंगे, अतः महाराजा शुद्धोदन की मृत्यु के पश्चात् जब वह पुन: वैशाली में तथागत बुद्ध के पास पहुँची, तब अपने काले और घने सुन्दर बालों को कटवा लिया था, राजसी वस्त्राभूषण त्याग कर काषाय - वस्त्र धारण कर लिये थे तथा अन्य शाक्य-स्त्रियों को साथ लेकर पैदल वहाँ पहुँची, फूले पैर, धूल भरे शरीर वाली दुःखी गौतमी ने अपने हृदय की बात आनन्द के समक्ष प्रकट की। आनन्द ने तथागत से स्त्रियों को दीक्षा देने का अनुरोध किया, किंतु बुद्ध ने पुनः अपनी असहमति प्रकट की। तब आनंद ने बुद्ध को उनके उस सिद्धान्त का जिसमें स्त्रियों को भी अर्हत् पद के योग्य बताया गया था; स्मरण कराते हुए कहा कि गौतमी आपकी अभिभाविका, पोषिका, क्षीरदायिका है, जननी की मृत्यु के पश्चात् उसने आप पर बहुत उपकार किये हैं, अतः स्त्रियों को प्रव्रज्या की अनुमति प्रदान करें। उस समय तक भी बुद्ध नारी - दीक्षा के पक्ष में नही थे, उन्हें उसमें अनेक दोष दिखाई दे रहे थे, तथापि आनन्द के अकाट्य तर्कों तथागत बुद्ध को उलझन में डाल दिया, उन्होंने बहुत अनिच्छापूर्वक इस शर्त पर भिक्षुणी संघ की स्थापना की अनुमति दी, कि भिक्षुणियों को 'आठ गुरुधर्मों का पालन करना होगा। वे गुरुधर्म इस प्रकार हैं (i) सौ वर्ष की दीक्षित भिक्षुणी भी एक दिन के दीक्षित भिक्षु को वंदन करेगी। (ii) जहाँ एक भी भिक्षु नहीं हो वहाँ वर्षावास नहीं करेगी। (iii) वर्ष के प्रत्येक पक्ष में भिक्षु संघ से उपोसथ दिवस तथा उपदेश प्राप्त करने की अपेक्षा करेगी। (iv) प्रत्येक वर्षावास के अंत में भिक्षुणी दोनों संघों से अपने आचरण के संबंध में शिथिलता बतलाने का निवेदन करेगी। (v) भिक्षुणी से यदि कोई गलती हो जाती है तो वह दोनों संघ द्वारा निश्चित् उचित प्रायश्चित् करेगी। (vi) भिक्षुणी बनने की उम्मीदवार 6 महीने प्रशिक्षण के पश्चात् प्रव्रज्या के लिये दोनों संघों से निवेदन करेगी। (vii) भिक्षुणी, भिक्षु को कोई दोष-दर्शन या दुर्वचन नहीं कहेगी । (viii) भिक्षुणी, भिक्षु को कोई उपदेश नहीं देगी - भिक्षु, भिक्षुणी को उपदेश दे सकता है। महाप्रजापति ने इन आठों शर्तों को प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार किया और बौद्ध संघ के इतिहास में प्रथम भिक्षुणी बनी 160 57. महावग्ग 1/1/6 58. साधु भंते, लभेय्य मातुगामो तथागतप्पवेदितं धम्मविनये अगारस्मा अनगारियं पव्वजंति । अलं गोतमि मा तें रूच्चि मातुगामस्स पव्वजन्ति - चुलवग्ग, पृ. 374, नालंदा देवनागरी पाली ग्रंथमाला, बिहार, 1956 ई. 59. अथ खो महाप्रजापति गौतमी केशछादयित्वा कासायानिअत्थानि वच्छादेत्वा सम्बहुलाहि साकियानिही सद्धिं सेन वेसाली तेन पक्कामि । - वही, भिक्षुणीविनय-3 पृ. 373 60. चुल्लवग्ग 10/2 पृ. 374-75 Jain Education International 13 For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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