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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास (ई. 1896-1956), काशी की विशिष्ट साधिका श्री सिद्धिमाता" (सं. 1942), कृष्णानंद गिरि उर्फ 'मौनी मां'2, वृन्दावन में बांके बिहारी वकील की शिष्या श्री कृष्णा जी, संत श्री ललिता जी4, संत श्री संतोष जी, सरला जी जिनके विषय में चक्रधर बाबा का कथन है कि 'वृन्दावन में सौ महात्माओं के दर्शन करने के समान इन दो सहेलियों के दर्शन कर लेना है। श्री दुर्गी मां आदि अनेकों जीवन्मुक्त साधिका के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त संत महिलाएँ हुई हैं, जिनका सारा समय भगवद्भक्ति हरिकीर्तन एवं चर्चा में ही व्यतीत होता था, ये वैराग्य और तितिक्षा पूर्ण जीवन यापन करती हुई हजारों लोगों की श्रद्धा पात्र बनी हैं। वर्तमान में प्रजापिता ब्रह्माकुमारियाँ गृहवास का त्याग कर ब्रह्मचर्य का पालन करती हुई समाज की आध्यात्मिक उत्क्रांति के लिये एक सराहनीय कार्य कर रही हैं। यह संस्था हैदराबाद सिन्ध के दादा लेखराज एवं उनकी पत्नी जसोदा द्वारा स्थापित की गई थी। 1.6.6 नाथ-संप्रदाय हिंदूधर्म में एक परम्परा नागा साधु-संन्यासिनियों की चल रही है। ये मूलतः नाथ संप्रदाय से संबंधित मानी जाती हैं, ये गुफाओं में रहकर एकान्त साधना करती हैं। भूतकाल में अनेक शक्तिस्वरूपा देवियाँ थीं, जो नग्न रूप में साधना करती थीं, आज से 60 वर्ष पूर्व भी उनकी साधना इसी प्रकार चलती थी, उनकी दीक्षा-विधि नग्न रूप में पर्दा लगाकर दी जाती है। वर्तमान सामाजिक, राजनैतिक वातावरण में उनके गुरू उन्हें वस्त्र धारण की अनुमति देते हैं, अतः वे जब गुफा से बाहर निकलती हैं, तब वस्त्र सहित निकलती हैं। नाथ सम्प्रदाय पर भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का प्रभाव है यह परम्परा भगवान आदिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ आदि को भी मानती रही है। उपसंहार इन सब उच्चकोटि की साधिकाओं, भक्तिमती महिलाओं की उपस्थिति हिंदूधर्म में उपलब्ध होने पर भी संपूर्ण वैदिक व ब्राह्मण धर्म का हार्द गृहस्थाश्रम की ही प्रतिष्ठा करना रहा है, उसी की बहुमुखी प्रशंसा से श्रुति, पुराण, स्मृति एवं महाकाव्य आद्यन्त व्याप्त है। शूद्रों एवं स्त्रियों को तो संन्यास अथवा वैराग्य ग्रहण करने का अधिकार ही नहीं है। सारांश रूप में हम कह सकते हैं कि वैदिकधर्म में संन्यस्त महिलाओं का सर्वग्राह्य , संगठित और आत्मलक्ष्यी रूप दृष्टिगोचर नहीं होता। 1.7 बौद्धधर्म में भिक्षुणी संघ 1.7.1 बौद्धधर्म में श्रमणी-संघ का विकासः एक परवर्ती घटना महावग्ग का एक हिस्सा 'चुल्लवग्ग' है, उसके दसवें अध्याय में बौद्ध भिक्षुणी संघ की स्थापना की कथा है। तथागत बुद्ध ने जिस समय अपने धर्मचक्र का प्रवर्तन किया उस समय उन्होंने भिक्षु संघ की ही स्थापना की थी और 51. श्री श्री सिद्धिमाता : राजबालादेवी, चौखम्बा विद्याभवन चौंक, बनारस, 1992 ई 52. वही, पृ. 111 53-56. ब्रज विभव की भक्तिमती उषाजी, पृ. 305, 359, 361, 362 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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