________________
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास साथ चले। आपका साहित्य 'जैन बाल प्रबोध' भाग 2 एवं 'सिद्धे सरणं पवज्जामि' है। साध्वी डॉ. अक्षय ज्योति द्वारा संपादित पुस्तक 'हमें तुम पर नाज है', में श्री चंदनाजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का मूल्यांकन किया गया है।
6.6.3.14 साध्वी डॉ. अक्षयज्योतिजी (सं. 2028 )
आप उदयपुर के डॉ. हरीसिंहजी कंठालिया की सुपुत्री हैं। नौ वर्ष की उम्र में अपनी मातेश्वरी साध्वी कलावतीजी के पास संवत् 2028 भोपाल में दीक्षा अंगीकार की, प्रवर्तक हीरालालजी म. सा. आपके दीक्षा गुरू थे। आप अत्यंत होनहार विदुषी साध्वी हैं, विशिष्ट प्रवचनकर्त्री, निर्भीक एवं व्यवहार कुशल भी हैं। महासती चंदनाजी की मंत्री के रूप में आप उनकी सतत सहयोगिनी बनकर रहती हैं। आपकी प्रेरणा से बालकों में सुसंस्कारों का निर्माण करने हेतु 'अक्षय फाउण्डेशन' संस्था सक्रिय रूप से कार्यरत है। 481
6.6.3.15 श्री रमणिककुंवरजी (सं. 2029-55 )
आपका जन्म बोरनार ग्राम ( जलगांव ) में संवत् 1988 को श्री सुगनचंदजी व माता छोटीबाई के यहां हुआ। बूसी गांव के श्री राजमलजी गांधी से विवाह होकर एक पुत्र की प्राप्ति हुई। पति के स्वर्गवास के पश्चात् संवत् 2029 माघ शुक्ला 13 को नाशिक में श्री पानकंवरजी के पास दीक्षा हुई। आप घोर तपस्विनी थीं, 18 वर्ष की उम्र से ही तपस्याएँ प्रारंभ कर दी, अपने जीवन में कुल 31 मासक्षमण तथा 35, 45 उपवास तक की तपस्याएँ की। अन्य तपस्याओं की तो गिनती ही नहीं। श्री मंगलज्योतिजी व रचिताश्रीजी इनकी शिष्याएँ हैं । 482
6.6.3.16 डॉ. श्री मधुबालाजी (सं. 2030 से वर्तमान)
आप दिवाकर संप्रदाय की चिंतनशील साध्वी हैं। आपने 'श्री रमेशमुनिजी का साहित्य' पर विक्रम विश्वविद्यालय से सन् 1998 में पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। साथ ही 'नारी की जीत', आग बना पानी, मैं जीत गई, आदि रोचक उपन्यास भी लिखे हैं। आपकी दो शिष्याएँ हैं- श्री प्रतिभाश्रीजी, श्री मंगलमैत्रीजी ।
6.6.3.17 श्री सत्यसाधनाजी (सं. 2031 )
आप औरंगाबाद के स्व. कुंजीलालजी भुरावत की सुपुत्री हैं, प्रवर्तक श्री हीरालालजी मा. सा. से 19 वर्ष की वय में ब्यावर में दीक्षित होकर सिद्धान्तशास्त्री, साहित्य विशारद एवं एम. ए. किया। आप व्याख्यान कला में दक्ष, संगीतप्रेमी, विनोदी स्वभाव की स्वतंत्र विचार वाली साध्वी हैं। आप द्वारा धार्मिक, सामाजिक अनेकविध कार्य चलते हैं। वर्तमान में आपकी प्रेरणा से पूना (कात्रज) में 'अरिहंत साधु-साध्वी केन्द्र' की स्थापना हुई हैं। आपकी शिष्याओं में श्री अर्हत्ज्योतिजी, अरूणप्रभाजी, चारूप्रज्ञाजी, हितसाधनाजी, हर्षप्रज्ञाजी, व चरणप्रज्ञाजी हैं। 483
481. हमें तुम पर नाज है, पृ. 86
482. पत्राचार से प्राप्त सामग्री के आधार पर
483. हमें तुम पर नाज है, पृ. 88
Jain Education International
688
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org