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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ शिक्षा प्राप्त की। आपकी प्रेरणा से कई स्थानों पर महिला मंडल, बहू मंडल, बालिकामंडल की स्थापना हुई है। आपने 21 उपवास, कई बेले तेले चोले, वर्षीतप आदि तप भी किया है। आपकी एक शिष्या है - साध्वी डॉ. मधुबालाजी 1478 6.6.311 श्री ज्ञानवतीजी (सं. 2020 ) आप 'बरजाल' (राज.) के भंडारी परिवार से संबंधित हैं। माघ शुक्ला 2 सं. 2020 को मल्हारगढ़ (म.पं.) में दिवाकर संप्रदाय के श्री मदनकुंवरजी के पास आपने प्रव्रज्या अंगीकार की उस समय आपकी सन्तान मात्र चार वर्ष की थी। आप शांत, दान्त व सरल स्वभावी हैं, व्यसन मुक्ति एवं अन्ध-परम्पराओं का उन्मूलन करने में आप सदा अग्रणी रही हैं, अनेकों लोगों ने आपके उपदेशों से सात्विक जीवन जीने का संकल्प लिया है। आगम की गहन अध्येता होने के साथ आप तपस्विनी भी हैं। वर्षीतप, तीन अठाई, मौन व्रत से रानियों का तप, चन्द्रकला तप, षट्स तप, दस प्रत्याख्यान आदि विविध तपस्याएँ की है। 'ज्ञानालोक' ग्रंथ में आपके विचार संग्रहित हैं। आपकी चार शिष्याएँ हैं - डॉ. श्री सुशीलजी 'शशि', डॉ. श्री मधुजी, श्री कमलेशजी, छोटे विजयश्रीजी 1479 6.6.3.12 डॉ. श्री सुशीलजी 'शशि' (सं. 2023 ) आपका जन्म देवगढ़ (राज.) के भंडारी परिवार में हुआ। 26 जनवरी 1967 को कलोलिया (म. प्र. ) ग्राम में श्री ज्ञानवतीजी की शिष्या के रूप में आप दीक्षित हुईं। उस समय आपकी उम्र मात्र 7 वर्ष की थी। आपने 'जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज और उनका हिन्दी साहित्य' विषय पर सन् 1987 में एस. एन.डी. टी. युनिवर्सिटी मुंबई से पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। आपकी मौलिक पुस्तकें - तीसरा नैत्र, चिंतन के आलोक में, अतीत का दिव्य स्नान, सुशील संदेश प्रकाशित हैं। इतिहास में आपकी गहरी रूचि है। श्री जैन दिवाकर ज्ञान साधना ट्रस्ट ब्यावर, जैन दिवाकर ज्ञान प्रकाशन चित्तौड़गढ, श्री सुशील जैन दिवाकर ज्ञान प्रकाशन समिति ब्यावर आदि संस्थाएँ जहां आपके साहित्य - प्रेम को प्रदर्शित करती हैं वहीं संगठन के क्षेत्र में दिवाकर महिला मंडल, नवयुवक मंडल, बालिका मंडल, गौतम बाल मंडल, चंदनबाला बालिका मंडल, जैन दिवाकर सुशील नवयुवक मंडल आदि की स्थापना भी की है। तप के क्षेत्र में पंचकल्याणक तप, शांतिनाथ तप, चन्द्रकला तप, पुष्यनक्षत्र तप आदि विविध तपोनुष्ठान किये हैं। आपकी एक शिष्या श्री श्रद्धाजी हैं। 480 6.6.3.13 डॉ. साध्वी चंदनाजी (सं. 2023 ) उदयपुर के बाबेल परिवार की आप सुसंस्कारित कन्या रत्न हैं। पंडित हीरालालजी महाराज से जावरा में दीक्षा अंगीकार कर आप मालव सिंहनी श्री कमलावतीजी की शिष्या बनीं। ज्ञान की अदम्य लालसा लेकर आपने जैनधर्म और दर्शन का उच्चकोटि का ज्ञान प्राप्त किया। आप द्वारा शिक्षण शिविर, महिला सम्मेलन युवक-सम्मेलन, तप, जप, स्पर्धा, आनन्द संस्कार केन्द्र', 'जैन साध्वी कमला शोध संस्थान' आदि अनेक सामाजिक, धार्मिक एवं निर्माणात्मक कार्य हुए हैं। 'मातुश्री वृद्धाश्रम नासिक रोड' की भी आप प्रेरिका रही हैं। स्थानकवासी समाज में 'आनन्द पद-यात्रा' का नया क्रान्तिकारी कदम उठाने वाली आप एकमात्र साध्वी हैं। यह यात्रा 180 कि. मी. की सिन्नर से अहमदनगर तक की हुई, इसमें 400 पद यात्री जैनधर्म के संपूर्ण नियमों का पालन करते हुए आपके 478-480. पत्राचार से प्राप्त Jain Education International 687 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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