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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
के साथ आपका विवाह हुआ, किंतु दो वर्ष में ही विधवा हो जाने पर कार्तिक शु. 13 सं. 2007 में आपने जैन दिवाकर श्री चौथमलजी म. सा. से दीक्षा लेकर श्री बालकंवरजी का शिष्यत्व ग्रहण किया। आप मधुर व्याख्यानी, संयमी एवं आगमज्ञा थीं। 10 वर्षों से धुलिया में स्थिरवासिनी थीं, कृशकाया में भी आपका आत्मबल अपूर्व था, अंत समय में आपने जिस प्रकार देहाध्यास छोड़ा वह एक आदर्श है, 49 दिन तक आपका संथारा चला। इतनी सुदीर्घ अवधि में एक पाटे पर एक ही करवट सोये रहना, 5 इन्द्रिय के विषयों से सर्वथा उपरत हो जाना आपकी देह के प्रति निर्ममत्व भाव का सूचक है। 11 फरवरी 2004 को आप धूलिया में स्वर्गवासिनी हुई। आपकी स्मृति 'पान रमणिक शिक्षण फंड' की स्थापना हुई है। 474
6.6.3.7 श्री शांताकुमारीजी (सं. 2014 )
आप तातेड़ परिवार से बोरगांव (महा.) में श्री प्रतापमलजी म. सा. से दीक्षा अंगीकार कर मालवसिंहनी श्री कमलावतीजी की शिष्या बनीं। आप सिद्धान्तशास्त्री, आगम व स्तोक की ज्ञाता, प्रवचनकर्त्री, मृदुल स्वभावी, मिलनसार, सौम्य व शांत प्रकृति की हैं। 475
6.6.3.8 श्री सुशीलाकंवरजी (सं. 2016-22 )
आप तोंडापुर के श्री गुलाबचंदजी छाजेड़ की कन्या एवं जसराजजी बोहरा औरंगाबाद की धर्मपत्नी थी, उनके स्वर्गवास के पश्चात् 32 वर्ष की उम्र में पू. प्रतापमलजी म. से 'घोटी' में दीक्षा लेकर कमलावतीजी की शिष्या बनीं। आप घोर तपस्वी थीं, मासखमण से लेकर 56 दिन की उत्कृष्ट तपस्या की, संगीत के प्रति विशेष रूचि थी, सेवा में अग्रणी साध्वी थीं, संवत् 2022 जोधपुर में आपका स्वर्गवास हुआ, आपका जीवन परिचय 'ज्योति और ज्वाला' पुस्तक में प्रकाशित है 1476
6.6.3.9 श्री पुष्पावतीजी (सं. 2018 - स्वर्गवास )
आप पूना के श्रीमान् दीपचंदजी मरलेचा की सुपुत्री थीं, 16 वर्ष की उम्र में जावरा में पू. प्रतापमल जी महाराज से दीक्षा पाठ पढ़कर श्री कमलावतीजी की शिष्या बनीं। आप सिद्धान्त प्रभावक एवं आगमज्ञाता थी, साथ ही व्याख्यानी एवं स्पष्टवादी थीं। साध्वियों की सातापूर्वक लोच आदि करने में सिद्धहस्त थीं, आपकी दो बहनें -दिव्यसाधनाजी एवं अन्तरसाधनाजी आपके पास ही दीक्षित हैं। 477
6.6.3.10 श्री विजयश्रीजी (सं. 2020 )
आपका जन्म 'भुरट' परिवार तथा ससुराल कोठारी' परिवार में था, सं. 2020 अक्षय तृतीया के शुभ दिन रतलाम में दीक्षा हुई। आप श्री मदनकुंवरजी की शिष्या हैं। आपने वर्धा से कोविद एवं पाथर्डी से विशारद की 474. पत्राचार से प्राप्त
475. हमें तुम पर नाज है, पृ. 81
476. वही, पृ. 83
477. वही, पृ. 84
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