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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ तक आपको घरवालों ने आज्ञा नहीं दी, अंततः पूज्य आचार्य खूबचन्दजी म. सा. के चरणों में दीक्षा अंगीकार की। आप सदा स्वाध्याय व ध्यान में लीन रहती थीं, मृदुता, सहजता, सरलता, विनय व समर्पण आपके संयमी जीवन का आदर्श था। सं. 2001 ब्यावर में नौ दिन के संथारे के साथ स्वर्गवासिनी हुईं। 470 6.6.3.3 श्री बालकुंवरजी (सं. 1974-2024 ) आप सिंगोली के श्री रंगलालजी व माता जड़ावबाई नागोरी की कन्या थीं। श्री भंवरलालजी लसोड़ के साथ विवाह हुआ। पति के स्वर्गवास के पश्चात् संवत् 1974 में मालवसिंहनी श्री हगामकुंवरजी के पास दीक्षा अंगीकार की। ये श्री प्याराजी की परंपरा की साध्वी थीं। इनकी श्री गुलाबकुंवरजी श्री मानकुंवरजी, श्री पानकुंवरजी आदि शिष्याएँ हुई। अजमेर सम्मेलन में इन्हें चन्दनबाला श्रमणी संघ का उपाध्याय पद दिया था। कई चौपाई व रास भी इनके द्वारा रचित उपलब्ध होते हैं। 471 6.6.3.4 श्री कमलावतीजी (सं. 1992-2043 ) आप रतलाम (म.प्र.) के श्रेष्ठी श्री निहालचंदजी बोहरा एवं श्रीमती हगामबाई की सुपुत्री थीं। आपका जन्म आश्विन शुक्ला नवमी सं. 1983 में हुआ। पिता श्री ने आप का मुखमण्डल भी नहीं देखा कि स्वर्गवासी हो गये । आपकी मातेश्वरी हगामबाई के साथ आप (9 वर्ष की उम्र में) जैन दिवाकर चौथमलजी महाराज से रामपुरा में दीक्षा अंगीकार कर श्री साकरकुंवरजी की शिष्या बनीं। आप अत्यंत विदुषी, शास्त्र -मर्मज्ञा, साहित्यकर्त्री एवं मंत्रवेत्ता तथा ओजस्वी वक्ता थीं। आपको गुरू कृपा से 'पार्श्वनाथ भगवान का रक्षा कवच' प्राप्त हुआ, बड़े -2 संकटों में आपकी इस कवच स्तोत्र द्वारा रक्षा हुई। आप अत्यन्त निर्भीक एवं न्याय-नीति की वार्ता में सिंह सी गर्जना करने वाली संकल्प प्राणा साध्वी थीं। 16 नवम्बर सन् 1986 को 61 वर्ष की उम्र में आपका स्वर्गवास हुआ। आप 'मालवसिंहनी' के नाम से प्रख्यात थीं। 172 आपके श्रमणी - समुदाय का परिचय तालिका में दिया गया है। 6.6.3.5 श्री मदनकुंवरजी (सं. 1999 ) आप ‘बिल्लोद' ग्राम के नलवाया वंश में समुत्पन्न हुईं। मातुश्री छोगाजी के साथ सं. 1999 मृगशिर शु. 7 को मल्हारगढ़ में दीक्षा अंगीकार की। आप श्री रंगूजी की परम्परा के श्री सुन्दरकुंवरजी श्री प्याराजी की शिष्या श्री हगामकुंवरजी (लाट सा.) की शिष्या हैं। आप इलाहबाद से मध्यमा, पाथर्डी से विशारद की परीक्षा के साथ बत्तीस जैनागम, तर्क व्याकरण आदि की गहन अध्येता हैं, आपकी संप्रेरणा से अनेक स्थानों पर महिलामंडल, बहुमंडल बालिकामंडल की स्थापना हुई। आपकी दो शिष्याएँ हैं- श्री विजयश्री, श्री ज्ञानवतीजी । 473 6.6.3.6 श्री पानकंवरजी (सं. 2007-60 ) आपका जन्म झालरापाटन (राज.) में सौ. मैनाबाई भेरूलालजी गांधी के कुल में हुआ। श्री जीतमलजी बोरा 470. हमें तुम पर नाज़ है, पृ. 73 पर डॉ. साध्वी चन्दनाजी का लेख 471. पत्राचार द्वारा 472. हमें तुम पर नाज़ है, में डॉ. साध्वी चंदनाजी का आलेख 'एक दिव्य आत्मा' 473. पत्राचार के आधार पर Jain Education International 685 For Private & Personal Use Only पृ. 76-80 www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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