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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास कर दिया। फलतः 1999 आसाढ़ शु. 3 के दिन देशनोक में आचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज के श्रीमुख से दीक्षा अंगीकार की। आपने शास्त्रों की कुंजी रूप 200 स्तोक एवं कई चरित्र कंठस्थ किये। संस्कृत, प्राकृत, न्याय, व्याकरण आदि की आप गहन अध्येत्री तथा साधुमार्गी संघ की एक दिव्यमान, परमविदुषी एवं ओजस्वी व्याख्यात्री साथ ही प्रमुख सलाहकार भी थीं। आपने सुदूर उड़ीसा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तमिलनाडू, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश में विचरण कर शासन की महान प्रभावना की है। दक्षिण भारत के मद्रास एवं बैंगलोर प्रवास में आपने कई मुमुक्षु आत्माओं को दीक्षा प्रदान की। 72 वर्ष की उम्र में 25 जुलाई 1998 को चितोड़गढ़ में संलेखना सहित आपका महाप्रयाण हो गया। आपकी पावन-स्मृति में “श्री नानू स्वधर्मी सेवा कोष" की स्थापना की गई है। साधुमार्गी संघ का विभाजन होने के पश्चात् आप 'शांति क्रांति संघ' में सम्मिलित हो गईं थीं, आपकी शिष्याएँ वर्तमान में इसी संघ के प्रति आस्थाशील हैं। 67 6.6.2.48 श्री रत्नकुमारीजी (सं. 2006) ___आप उदयपुर निवासी श्रीयुत् फूलचन्दजी की सुपुत्री तथा श्रीमान् तेजसिंहजी रांका की धर्मपत्नी थीं। सं. 2006 चैत्र मास में बड़े संघर्षों का सामना करने के पश्चात् आप संयम पथ पर आरूढ़ हुईं, दीक्षा के समय अपनी ओर से पौषधशाला में 1001 रू. का दान भी दिया था आप त्यागी संयमी एवं विदुषी साध्वी थीं।468 6.6.3 आचार्य हुकमीचंदजी महाराज की दिवाकर संप्रदाय की श्रमणियाँ :
6.6.3.1 श्री मानकंवरजी (सं. 1967-73)
आप प्रतापगढ़ (राज.) की कन्या थी, आपका विवाह नीमच में श्री चौथमलजी के साथ हुआ। विवाह के तुरंत पश्चात् श्री चौथमलजी ने दीक्षा अंगीकार करली। उन्हें साधुवेष में देखकर मानकंवर अत्यंत व्यथित हुई कहने लगी- 'आपने तो मुझे छोड़कर वैराग्य ले लिया, अब मैं किसके भरोसे रहूं और क्या करूं?' मुनि श्री ने उसे समझाते हुए कहा- "तुम्हारे हमारे सांसारिक नाते तो जन्म-जन्मांतर में बहुत हो चुके, पर धार्मिक नाता नहीं हुआ. ... तुम भी साध्वी बन जाओ। संसार असार हैं इसमें न कोई किसी का साथी है न इसमें आत्मकल्याण हो सकता है।" मुनिश्री की वाणी का प्रभाव मानकंवर पर पड़ा वह भी साध्वी बन गई। विजयादशमी सं. 1967 को जावरा में इनकी दीक्षा के साथ 48 दीक्षाएं और भी हुई। साध्वी मानकंवरजी जैन सिद्धान्तों की मर्मज्ञा, तप-त्याग की प्रतिमा थी। सं. 1973 में इनका स्वर्गवास हुआ।469
6.6.3.2 श्री साकरकुंवरजी ( - 2001)
__ आपका विवाह निम्बाहेड़ा (राज.) में श्री खूबचंदजी के साथ हुआ। मिलन की प्रथम घड़ी में ही श्री खूबचंदजी ने अपनी दीक्षा की भावना प्रगट की, तो आप उनके पथ में विघ्न न बनकर स्वयं भी दीक्षा के लिये तैयार हो गईं। श्री खूबचंदजी ने गुरू नन्दलालजी के पास दीक्षा ग्रहण कर ली, उनकी दीक्षा के पश्चात् भी 8 वर्ष 467. (क) श्री केसरदेवी गौरव ग्रंथ, खंड 3, पृ. 358; (ख) समग्र जैन चातुर्मास सूची, सन् 1998 468. धर्ममूर्ति आनन्दकुमारी, पृ. 458 469. जैन प्रकाश पत्रिका, अप्रेल 1995, पृ. 17
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