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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ 6.6.2.42 श्री छगनांजी (सं. 1986-87) ___आप बड़कच्यास के निवासी श्री तेजमलजी कोठारी की धर्मपत्नी थीं, आप स्वाध्याय-परायणा तथा स्तोक की ज्ञाता थीं।462 6.6.2.43 श्री टीपूजी (सं. 1986-87) आप डूंगला निवासिनी थीं, मेवाड़ के देहातों में आपका अच्छा प्रभाव पड़ा, आप स्वाध्याय प्रेमी थीं।463 6.6.2.44 श्री रसालांजी (सं. 1990) आप किशनगढ़ निवासिनी थी, अजमेर के मिश्रीलालजी लोढ़ा की भतीजी एवं साध्वी छोटांजी की भगिनी थीं। सं. 1990- कृ. 3 को आपने दीक्षा अंगीकार की। आप ज्ञान ध्यान स्वाध्याय में रूचि वाली तथा प्रवचन क संगीतकला में प्रवीण थीं।464 6.6.2.45 श्री पानकंवरजी (सं. 1991) उदयपुर में पिता श्री गंगराजजी हींगड के यहाँ माता श्रीमती सलेकंवरजी की कुक्षि से सं. 1980 में आप जन्म ग्रहण किया। छोटी उम्र में ही सं. 1991 महावीर जयंति के शुभ दिन, माताजी व छोटी बहन मनोहरकंव के साथ भीण्डर में आपकी दीक्षा हुई। आप विदुषी शासन प्रभाविका साध्वी हैं। आपकी लघु भगिनी साध्वी श्रं मनोहरकवरजी भी अत्यंत विदुषी, आशुकवयित्री प्रज्ञासंपन्न एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व की धनी साध्वीजी हैं। 6.6.2.46 श्री केशरकंवरजी (सं. 1995-2060) स्थविरा श्री केशरकंवरजी ने मरूधरा बीकानेर जिले के सुरपुरा ग्राम में श्री शिवदासजी डागा के घर जन ग्रहण किया, बीकानेर के श्री पानमलजी गोलछा के साथ आपका पाणिग्रहण हुआ, पतिवियोग के पश्चात् आप ज्येष्ठ शु. 14 सं. 1995 को आचार्य जवाहरलालजी महाराज के श्री मुख से बीकानेर में दीक्षा ग्रहण की। उत्कृष् भावों से चारित्र पालन, गुरू आज्ञा का सर्वतोभावेन पालन एवं अनुशासितजीवन के कारण साधुमार्गी संघ में आ का प्रमुख स्थान रहा। अंत समय में 31 दिन का तिविहारी तथा 64 घंटे के चौविहारी संथारे के साथ नोखामंड में समाधिमरण को प्राप्त हुईं। 93 वर्ष की उम्र में भी निर्लिप्त भावना, संयम गुणों की साधना, निर्भय मृत्युञ्जय आराधना द्वारा सदा सदा के लिये आप मुमुक्षु साधकों के लिये प्रेरणादात्री बन गईं।466 6.6.2.47 श्री नानूकंवरजी (सं. 1999-2055) आप भी साध्वी वृंद की अग्रणी साध्वी थीं। आपका जन्म सं. 1984 देशनोक (राज.) में पार्वतीबाई व कुक्षि से श्री किशनलालजी बोथरा के यहाँ हुआ। विवाह के पश्चात् वैधव्य के योग ने आपको भोग से उपर 455-463. वही, पृ. 452 464. वही, पृ. 458 465. श्री केसरदेवी गौरव ग्रंथ, खंड 3, पृ. 358 466. श्रमणोपासक, वर्ष 41, अंक 10, नवम्बर 2003, पृ. 139 683 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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