________________
स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ
ढड्ढा
ने अपनी ओर से अजमेर से दीक्षा महोत्सव पर बैंड-बाजे भेजकर दीक्षा करायी, सं. 1976 भाद्रपद कृ. 5 के दिन धूमधाम से आपकी दीक्षा हुई। दीक्षा के पश्चात् आपने 8 शास्त्र, कई थोकड़े कंठस्थ किये, संस्कृत, प्राकृत एवं सभी आगमों का अध्ययन किया। आप शांत सौम्य प्रकृति की सेवाभाविनी साध्वी थीं, आपका प्रवचन भी बड़ा प्रभावक होता था। 447
6.6.2.28 श्री वरजूजी (सं. 1978 )
आप बीकानेर की थीं, ज्येष्ठ शु. 7 को जैनेन्द्री दीक्षा ग्रहण कर ज्ञान-ध्यान स्वाध्याय में लीन रहीं, और संघस्थ साध्वियों की सेवा-शुश्रूषा में तत्पर रहीं। 448
6.6.2.29 श्री जड़ावांजी (सं. 1978 )
आप बीकानेर निवासी श्री हस्तीमलजी कोचर की धर्मपत्नी थीं, सं. 1978 में प्रव्रजित हुईं। आप उद्यमशील साध्वी थीं 1449
6.6.2.30 श्री दाखांजी (सं. 1979 )
आप सोजत निवासी श्री किशनलालजी मांडोत की धर्मपत्नी थीं अति संघर्ष के पश्चात् पति से दीक्षा की आज्ञा प्राप्त कर मृगशिर कृ. 7 को वैराग्यभाव से दीक्षा अंगीकार की। आप आगमज्ञा एवं शासन प्रभाविका साध्वी थीं, आपनी वाणी में द्राक्ष सी मीठास थी, एवं सेवा कार्य में सदा तत्पर रहती थीं। 450
6.6.2.31 श्री नगीनांजी (सं. 1981 )
आप छोटी सादड़ी निवासी श्रीमान् झमकमलजी कटारिया की धर्मपत्नी थीं, आषाढ़ शु. 2 को मंदसौर में दीक्षा ग्रहण की, आप एक विदुषी साध्वी थीं, स्वर की मधुरता से आप सभी के मन को मोह लेती थीं। आपका आगम ज्ञान एवं हिंदी-संस्कृत भाषाओं पर भी आधिपत्य अच्छा था, व्याख्यान शैली बड़ी रोचक और प्रभावोत्पादक थी, मेवाड़ मालवा आदि क्षेत्रों में आपने धर्म की खूब प्रभावना की कई संघों में चले आ रहे आपसी वैमनस्य और फूट को दूर करने में आपकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही । 451
6.6.2.32 श्री मैनाकुमारीजी (सं. 1981 )
आप थांदला निवासी श्री चुन्नीलालजी बाफणा की धर्मपत्नी थीं। सं. 1981 चैत्र शु. 9 को भागवती दीक्षा स्वीकार की। आप सेवाभाविनी तथा अत्यल्प निद्रा लेती थीं, रात्रि की परिचर्या आप बखूबी करती थीं। ज्ञानाभ्यास सेवा आदि के साथ आपने दीर्घ तपस्याएँ भी की थीं 1452
6.6.2.33 श्री गट्टूजी (सं. 1982 )
आप निम्बाहेड़ा निवासी श्री किरतमलजी सिंघी की धर्मपत्नी थीं, आपने अपने पुत्र समीरमलजी को दीक्षा देकर सं. 1982 माघ शु. 5 को स्वयं भी दीक्षा अंगीकार करली, आप मधुर स्वभावी सेवाभाविनी साध्वी थीं। 453 443-449. वही, पृ. 449-50
450-451. वही, पृ. 457
452-454 वही प1. 451
Jain Education International
681
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org