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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास से कुछ दूर श्री धापूजी आर्या के कर-कमलों द्वारा आप दोनों माता-पुत्री ने दीक्षा अंगीकार की। आपकी प्रवचनशैली प्रभावशाली थी, आप अनुभवी और संयमनिष्ठ साध्वी थी।29 6.6.2.10 आर्या बरजूजी (सं. 1960 के लगभग) आप लोहावट की रहने वाली थी। माता-पिता ने करीब नौ साल की उम्र में आपकी शादी कर दी थी। दैवयोग से पति का अल्पसमय में देहावसान हो गया। आपने ससुरालवालों से कठिनता पूर्वक आज्ञा प्राप्त की और साध्वीश्री मेहताबकुमारीजी के चरणों में दीक्षा ग्रहणकी। दीक्षा लेने के बाद आपने बड़ी-बड़ी तपस्याएँ की। संवत् 1960 में आपका चातुर्मास जावरा शहर में था, तब 62 दिन की तपस्या की। आप तपस्या में शारीरिक व दैनिक सभी संयम कार्य अपने हाथों से ही करती थीं। पारणे के दिन आप स्वयं भिक्षाचर्या हेतु जातीं और प्रत्येक घर से थोड़ा-थोड़ा आहार लेकर सबको संतुष्ट करती। पारणा करते समय सभी चीजों को एक ही पात्र में मिश्रित कर अग्लान भाव से भोजन करती थीं। एकबार बीकानेर में आपने 82 उपवास किये। उस समय 82 दिन के लिए दिन व रात्रि में शयन नहीं करना, शरीर नहीं खुजलाना, थूकना नहीं, आदि भीष्म प्रतिज्ञा ग्रहण की। इस दीर्घ तपस्या और कठोर अभिग्रह के दौरान ही अनशन में आप समाधिमरण को प्राप्त हुईं।430 6.6.2.11 प्रवर्तनी सुगनकंवरजी (सं. 1960-2007) आपका जन्म मारवाड़ देशनोक निवासी रावतमलजी ओसवाल की धर्मपत्नी मगनीबाई की कुक्षि से हुआ। सं. 1960 के लगभग आपने संयम धारण किया। आप अपने समय की महान विदुषी साध्वी थीं। प्रवर्तिनी राजकंवरजी के पश्चात् श्री खेतांजी की संप्रदाय की सतियों का नेतृत्व आप ही करती थीं। आप हर क्रिया का बड़ी सजगता से पालन करती थीं। वृद्धावस्था में महासती श्री चम्पाजी को प्रवर्तनी पद देकर आप सं. 2007 में स्वर्ग सिधारी।। 6.6.2.12 प्रवर्तनी श्री मोताजी (20वीं सदी का उत्तरार्द्ध) आप मालव प्रान्त में रतलाम निवासी थीं, पूज्य श्रीलालजी महाराज के वैराग्य रस से ओतप्रोत उपदेशों को श्रवण कर आपकी सखी उमाजी एवं उनकी पुत्री तीनों ने दीक्षा ली। कुछ ही समय में आपके शिष्या परिवार की की वृद्धि हुई। जिनमें कुल 53 साध्वियों का नामोल्लेख है। यह सती मंडल श्री मोताजी की संप्रदाय के रूप में प्रसिद्ध हुआ, श्री मोताजी 20वीं सदी के उत्तरार्ध काल की साध्वी थीं।12 6.6.2.13 श्री सौभाग्यकुमारीजी (सं. 1964) आप बड़ी सादड़ी मेवाड़ की निवासिनी थीं, सं. 1964 पौष कृ. 4 को दीक्षा अंगीकार की, आप अल्पभाषिणी तथा ज्ञानध्यान में तल्लीन रहने वाली शांत प्रकृति की साध्वी थीं।433 429. वही. पृ. 445 430. मुनि नेमिचंद्र, धर्ममूर्ति आनन्दकुमारी, पृ. 454 431. साधुमार्गी का पावन सरिता, पृ. 337 432. वही, पृ. 338 433. धर्ममूर्ति आनन्दकुमारी, पृ. 446 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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