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________________ 6.5.9.30 श्री कल्पलताजी (सं. 2046 ) आप बीकनेर के श्री चंपकलालजी वैद की सुपुत्री हैं। आठ वर्ष की वय में माघ शु. 5 सं. 2046 को नागौर में उपप्रवर्तक श्री गौतममुनिजी से दीक्षा लेकर श्री केशर कुंवरजी की शिष्या बनीं। आप तप में अभिरूचि रखती हैं, 5, 15, 21, 31, 41 एवं 43 उपवास तक की दीर्घ तपस्या की है। 39 श्री रघुनाथजी महाराज की परम्परा के मरूधर केशरी श्री मिश्रीमलजी महाराज की वर्तमान में श्री तेजकुंवरजी, श्री मनोहरकुंवरजी, श्री पुष्पवतीजी, श्री सोहनकुंवरजी, श्री जयमालाजी, श्री इन्द्रप्रभाजी, श्री निर्मलकंवरजी, श्री धर्मप्रभाजी, श्री मंगलज्योतिजी, श्री प्रतिभाजी आदि 30 विदुषी श्रमणियों का उल्लेख चातुर्मास सूची में उपलब्ध होता है 1400 जयमल संप्रदाय के आचार्य शुभचन्द्रजी महाराज की आज्ञा में महासती श्री मदनकंवरजी, श्री संतोषकंवरजी, डॉ. श्री बिन्दुप्रभाजी, श्री उगमकंवरजी (बड़े) श्री निर्मलकंवरजी, श्री उगमकंवरजी (छोटे), श्री जयप्रभाजी, श्री हेमप्रभाजी, श्री पूरिमाजी, श्री दरियावकंवरजी, श्री राजमतीजी, श्री विनयश्रीजी, श्री शारदाजी, श्री रविप्रभाजी, श्री संवेगप्रभाजी, श्री चरित्रप्रभाजी, डॉ. श्री चेतनाजी, श्री सिद्धिश्रीजी, श्री दिव्यश्रीजी, श्री शशिप्रभाजी, श्री इन्दुप्रभाजी, श्री निपुणप्रभाजी, श्री वृद्धिप्रभाजी, श्री सुबोधप्रभाजी, श्री वैशालीप्रभाजी, श्री अर्पणप्रभाजी, श्री रजतश्रीजी, श्री वैभव श्रीजी, श्री परमश्रीजी, श्री देशनाश्रीजी, श्री चरमश्रीजी, श्री नियागश्रीजी आदि 32 साध्वियाँ विचरण कर रही हैं। 401 जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास इनके अतिरिक्त रत्नवंश से संबंधित वर्तमान में 61 साध्वियों के नाम भी चातुर्मास सूची से प्राप्त हुए हैं। साध्वीप्रमुखा श्री सायरकंवरजी, श्री विमलावतीजी, श्री शांतिजी, श्री चन्द्रकलाजी, श्री दर्शनलताजी, श्री शशिकलाजी, श्री समताजी, श्री संतोषकंवरजी, श्री मनोहरकंवरजी, श्री कौशल्याजी, श्री पुनीतप्रभाजी, श्री शांतिकंवरजी, श्री इंदुबालाजी, श्री सुमतिप्रभाजी, श्री मुदितप्रभाजी, श्री तेजकंवरजी, श्री सुमनलताजी, श्री स्नेहलताजी, श्री मंजुलताजी, श्री यशप्रभाजी, श्री भक्तिप्रभाजी, श्री रतनकंवरजी, श्री विनीतप्रभाजी, श्री उषाजी, श्री निरंजनाजी, श्री सुशीलकंवरजी, श्री सरलेशप्रभाजी, श्री विनयप्रभाजी, श्री इन्दिराप्रभाजी, श्री रक्षिताजी, श्री सुयशप्रभाजी, श्री प्रभावतीजी, श्री सौभाग्यवतीजी, श्री सुश्रीप्रभाजी, श्री शारदाजी, श्री लीलाकंवरजी, श्री सोहनकंवरजी, श्री समर्पिताजी, श्री रुचिताजी, श्री विवेकप्रभाजी, श्री जागृतिजी, श्री परागप्रभाजी, श्री वृद्धिप्रभाजी, श्री ऋद्धिप्रभाजी, श्री सिद्धिप्रभाजी, श्री ज्ञानलताजी, श्री चारित्रलताजी, श्री भाग्यप्रभाजी, श्री प्रतिष्ठाप्रभाजी, श्री निष्ठाप्रभाजी, श्री निशल्यावतीजी, श्री श्रुतिप्रभाजी, श्री मतिप्रभाजी, श्री मुक्तिप्रभाजी, श्री उदितप्रभाजी, श्री संयमप्रभाजी, श्री विमलेशप्रभाजी, श्री पुष्पलताजी, श्री चैतन्यप्रभाजी, श्री पद्मप्रभाजी 1402 इनका विशेष ज्ञातव्य उपलब्ध नहीं हुआ। 6.5.10. आचार्य श्री धर्मदासजी की मेवाड़ - परम्परा का श्रमणी - समुदाय : धर्मदासजी महाराज के शिष्य छोटे पृथ्वीराजजी महाराज से मेवाड़ परंपरा चालु हुई, इसमें कई यशस्विनी साध्वियाँ हुई हैं, इस शाखा की पांच सतियों का उल्लेख कोटा संप्रदाय के आचार्य छगनलालजी महाराज के हस्तलिखित पन्ने में मिलता है । उनके नाम हैं- कुनणांजी (कुंदनजी), रतनांजी, गुमानांजी, सिणगारांजी, सिरेकंवरजी । 399. समग्र जैन चातुर्मास सूची सन् 2004, पृ. 46 400. समग्र जैन चातुर्मास सूची, 2005 विशेषांक, पृ. 30 401. जयगुरू जयमल टाइम्स, संपा. जे. धरमचंद लूंकड़, वर्ष 2 अंक 2 ई. 2005 पृ. 2 श्री श्रुताचार्य चौथ स्मृति भवन, ब्यावर 402. समग्र जैन चातुर्मास सूची सन् 2004, पृ. 48 1 Jain Education International 668 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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