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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ सन् 2005 में इनके शोधकार्य 'जैनधर्म में ध्यान का ऐतिहासिक विकासक्रम' पर जैन विश्व भारती संस्थान द्वारा पी. एच. डी. की उपाधि से विभूषित किया गया।394 6.5.9.26 श्री विजयप्रभाजी (सं. 2038) आपका जन्म ब्यावर (राज.) में श्रीमान् माणकचंदजी डोसी के यहां हुआ। वि. सं. 2038 चैत्र शु. 7 के शुभ दिन ब्यावर में ही युवाचार्य श्री मिश्रीमलजी म. सा. से संयम-व्रत ग्रहण किया। आप सिद्धान्तविशारद एवं साहित्यरत्न हैं।95 6.5.9.27 डॉ. श्री हेमप्रभाजी (सं. 2039) ___आप श्री मांगीलालजी चौरड़िया की सुपुत्री हैं। आपकी दीक्षा माघ कृष्णा 5 सं. 2039 को नोखा चांदावतों में श्री ब्रजलालजी म. सा. के श्रीमुख से संपन्न हुई। आपको दशवैकालिक, उत्तराध्ययन सूत्र, सुखविपाक, नन्दीसूत्र एवं 100 स्तोक, ढाले व स्तवन कंठस्थ हैं। आपने संस्कृत में साहित्यरत्न किया है। तथा 'जैन स्तोत्र साहित्य का समीक्षात्मक अध्ययन' विषय पर जोधपुर विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है।96 विदुषी महासती श्री उमरावकुंवरजी म. सा. 'अर्चना' की आज्ञानुवर्तिनी शिष्याएँ श्री बसंताकुंवरजी, श्री चेतनाजी आदि 5 तथा विदुषी महासती श्री जयमालाजी, श्री आनंदप्रभाजी, श्री चंदनबालाजी आदि 5 का परिचय उपलब्ध नहीं हुआ। 6.5.9.28 डॉ. श्री चन्द्रप्रभा 'आभाश्री' (संव. 2041) ___ आपने 'जैन साहित्य में युवाचार्य मधुकरमुनि का योगदान' विषय पर शोधकार्य करके कानपुर विश्वविद्यालय से पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की है। दिल्ली से सन् 2003 में यह कृति प्रकाशित हुई है। इनकी अन्य कृतियाँ हैं-गीतों का गुलदस्ता, श्री कान चालीसा, श्री हजारी चालीसा, समर्पण (लघु उपन्यास) आत्म रोशनी (प्रश्नोत्तर) तथा “महासती द्वय स्मृति ग्रंथ" का संपादन भी किया है।397 6.5.9.29 श्री पुण्यशीलाजी (सं. 2043) आपका जन्म 1 मई 1974 को हरसोलाव (राजस्थान) में श्री गणेशलालजी के घर हुआ। 15 मई 1986 को चौकड़ीकलां (राज.) में प्रवर्तक श्री रूपमुनिजी से दीक्षा पाठ पढ़कर श्री निर्मलकुमारीजी की शिष्या बनीं। आपने शास्त्रज्ञान के साथ योग, रैकी, मुद्रा, स्वर, वास्तु, ज्योतिष आदि का भी अच्छा अध्ययन किया है। आप कोकिलकंठी, मधुर प्रवचनकार एवं प्रश्नमंच तथा शिविरों के माध्यम से धर्म जागरण का संदेश देने वाली विदुषी साध्वी हैं।398 394. जैन प्रकाश, दिल्ली, अप्रेल 2005, प्रथम पक्ष, पृ. 43 395-396. अर्चनार्चन, पृ. 48 397. अर्चनार्चन, पृ. 48 398. समग्र जैन चातुर्मास सूची, विशेषांक 2004, पृ. 44 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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