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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
6.5.9.21 श्री सुप्रियदर्शनाजी (सं. 2028 )
आप श्री सायरमलजी मेहता जालोर (राज.) निवासी की सुपुत्री है। ज्येष्ठ शु. 10 सं. 2028 को ब्यावर में बहुश्रुत श्री समर्थमलजी म. सा. से दीक्षा पाठ पढ़कर श्री केशरकुंवरजी की निश्रा में शिष्या बनीं। आपको आठ आगम व अनेकों थोकड़े कंठस्थ हैं। व्याख्यान में भी दक्ष हैं। आप तपस्विनी भी हैं, मासखमण, 41 उपवास आदि सुदीर्घ तपस्याएँ की हैं। आप श्रमण संघीय उपप्रर्वतक श्री विनयमुनिजी 'वागीश' की आज्ञानुवर्तिनी हैं।389
6.5.9.22 डॉ. श्री सुप्रभाजी 'सुधा' (सं. 2030)
आप उदयपुर के श्री भेरूलालजी धर्मावत की सुपुत्री हैं। आपकी दीक्षा महामंदिर (जोधपुर) में सं. 2030 के दिन स्वामी श्री व्रजलालजी मा. सा. युवाचार्य श्री मिश्रीमलजी म. सा. 'मधुकर' के द्वारा हुई। आप प्रखर प्रतिभा संपन्न साध्वी हैं, आप प्रयाग से हिंदी व संस्कृत में साहित्यरत्न, इन्दौर से संस्कृत में एम. ए. तथा पाथर्डी से जैन सिद्धान्ताचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण हैं। सर्दियों की एक सुबह, मानसरोवर के मोती, सीप के मोती, पिंजरे का पंछी, अंतर में झांक मन, जगने की बेला, अग्नि पथ पर बढ़ते चरण आदि मौलिक साहित्य व उपन्यास की सर्जना की है। इसके अतिरिक्त आवश्यक सूत्र तथा दशवैकालिक का संपादन, सुधामंजरी, सुधा-सिंधु, सुधा-संचय, अमृतवेला में तथा 'अर्चनार्चन' अभिनंदन ग्रंथ का संपादन भी किया है। आपने अहिल्यादेवी विश्वविद्यालय इन्दौर से वैदिक एवं बौद्ध चिन्तन धाराओं के विशेष संदर्भ में "जैन आगमों में भारतीय दर्शन के तत्त्व' विषय पर सन् 1989 में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। आप स्वभाव से गम्भीर, मितभाषी, मृदुभाषी, अध्ययनप्रिय सेवाभावी कर्मठ साध्वी हैं।390
6.5.9.23 श्री प्रतिभाजी (सं. 2030)
आपका जन्म गोगोलाव (नागौर) निवासी श्री घेवरचंदजी कांकरिया के यहां कार्तिक कृ. 11 सं. 2010 को हुआ। आपकी दीक्षा मृगशिर कृ. 11 सं. 2030 को जोधपुर में हुई। आप साहित्यरत्न व सिद्धान्ताचार्य हैं।391
6.5.9.24 श्री सुशीलाजी (सं. 2035)
आपका जन्म सं. 2016 माघ शु. 12 के दिन विजयनगर (राज.) निवासी श्री जवरीलालजी बुरड़ के यहां हुआ। आपकी दीक्षा मृगशिर शु. 8 को युवाचार्य श्री मिश्रीमलजी म. सा. के श्री मुख से हुई। आपने साहित्यरत्न एवं जैन सिद्धान्त प्रभाकर की परीक्षा उत्तीर्ण की है।392
6.5.9.25 डॉ. श्री उदितप्रभाजी (सं. 2037)
__ आपका जन्म कलकत्ता में सन् 1960 को श्री बालचंदजी वेदमूथा के यहां हुआ। माघ कृष्णा 5 सं. 2037 को डेह (राज.) ग्राम में स्वामी श्री ब्रजलालजी म. सा. द्वारा आपको दीक्षा-मंत्र प्रदान किया गया। आपने साहित्यरत्न एवं पाथर्डी बोर्ड से जैन सिद्धान्ताचार्य (प्र. खंड) की परीक्षा दी। आपने सुखविपाकसूत्र का संपादन किया।393 389. समग्र जैन चातुर्मास सूची, विशेषांक 2004, पृ. 46 390-393. अर्चनार्चन, पृ. 47
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