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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ
आपका जीवन तपोमय रहा. आपने वर्षीतप से लगाकर 40 उपवास तक की तपस्या की। सं. 2034 से घी, तेल, एवं अन्नाहार का त्याग कर दिया। आपने रत्न-रश्मियां, श्री मूलमुक्तावली, स्वाध्याय-सुमन, विकास के सोपान, सिद्धि के सोपान आदि पुस्तकों का संकलन एवं संपादन किया एवं स्वरचित अन्तर्नाद में आपके बने पैंसठिये यंत्र और उन पर ही स्तुतियां रची हैं।384
6.5.9.17 श्री रतनकुंवरजी (सं. 2010)
वि. सं. 2010 आसाढ़ शु. 5 के शुभ दिन किशनगढ़ में स्वामी श्री हजारीमलजी म. सा. ने आपको दीक्षा मंत्र प्रदान किया। आपको अनेक स्तवन, थोकड़े और ढालें कंठस्थ हैं।385
6.5.9.18 श्री कंचनकुंवरजी (सं. 2013)
आपका जन्म सं. 1999 की शिवरात्रि के दिन ब्यावर के श्रीमान् माणकचंदजी डोसी के यहां हुआ। मृगशिर शुक्ला 13 संवत् 2013 को उपाध्याय श्री कस्तूरचंदजी म. सा. से ब्यावर में दीक्षा ली। आपने पाथर्डी बोर्ड से आचार्य प्रथम खंड की परीक्षा दी, आप स्वभाव से सरल व प्रसन्नमुखी हैं।386
6.5.9.19 श्री निर्मलकुंवरजी (सं. 2019)
___ आप क्षत्रियकुल के श्री भौमसिंहजी पवार की सुपुत्री हैं, आपने 11 वर्ष की उम्र में 15 जून 1962 को हरसोलाव (नागौर) में पू. श्री रावतमलजी म. सा. के श्री मुख से दीक्षा ग्रहण कर श्री सौभाग्यकुंवरजी म. का शिष्यत्व प्राप्त किया। आपने 32 आगमों का गहन अध्ययन एवं हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, मराठी, संस्कृत, प्राकृत, पालि आदि भाषा ज्ञान में निपुणता प्राप्त की है। आपने मानव सहायता एवं पश-पक्षी के लिये अनेक कार्य किये हैं। योगशिविर, बाल संस्कार शिविरों के द्वारा धर्म की पावन गंगा बहा रहे हैं। आपकी सद्प्रेरणा से 'टिटवाला' (मुंबई के पास) में मानव सेवार्थ 'मानव कल्याण सेवा संस्थान' का निर्माण हो रहा है आपके प्रखर एवं ओजस्वी प्रवचन से हजारों लोग व्रत नियम, तप, त्याग एवं दान के कार्यों में अग्रसर हुए हैं। आपकी दो शिष्याएँ -श्री पुण्यशीलाजी एवं प्रणीताशीलाजी।387
6.5.9.20 श्री सेवावंतीजी
आप मुकेरियां (पंजाब) निवासी उत्तमचंदजी गादिया की सुपुत्री हैं। चैत्र कृ. 3 को 'कुंपकला' (श्रमणनगर) में श्री ज्ञानमुनिजी से दीक्षा लेकर महासती 'अर्चना 'जी की शिष्या बनी, आप स्वभाव से सरल एवं स्पष्टवादी हैं।388
384. अर्चनार्चन, डॉ. तेजसिंह गौड का आलेख-श्री उमरावकुंवरजी म. सा. 'अर्चना' का शिष्या परिवार, खंड-2, पृ. 44 385. अर्चनार्चन, पृ. 49 386. अर्चनार्चन, प्र. 45 387. समग्र जैन चातुर्मास सूची, विशेषांक 2004, पृ. 44 388. अर्चनार्चन, पृ. 45
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