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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ 6.5.9.10 श्री जड़ावांजी (सं. 1922-72) ____ आप आचार्य श्री रतनचन्द्रजी महाराज के संप्रदाय की प्रमुखा रंभाजी की शिष्या थी। इनका जन्म संवत् 1898 में सेठां की रिया में हुआ था सं. 1922 में ये दीक्षित हुई। नेत्र ज्योति क्षीण होने से सं. 1972 तक ये जयपुर में ही स्थिरवासी बनकर रहीं। यद्यपि ये अधिक पढ़ी लिखी नहीं थी, पर कविता करना इनकी जीवनचर्या का एक अंग बन गया था। 50 वर्ष के सुदीर्घ साधना काल में इन्होंने जीवन के विविध अनुभव आत्मसात् कर काव्य में उतारे इनका जीवन जितना साधनामय था उतना ही भावनामय। इनकी रचनाओं का एक संकलन 'जैन स्तवनावली' नाम से जयपुर से प्रकाशित हुआ है। प्रवृत्तियों के आधार पर इनकी रचनाओं को डॉ. नरेन्द्र भानावत ने 4 वर्गों में बांटा है-स्तवनात्मक, कथात्मक, उपदेशात्मक और तात्त्विक। सुमति कुमति को चोढालियु, अनाथी मुनि रो सतढालियों, जंबू स्वामी को सतढालियों इनकी कथात्मक रचनायें हैं। सरल बोलचाल की राजस्थानी भाषा में हृदय की उमड़ती भावधारा को विविध राग-रागिनियों के माध्यम से व्यक्त करने में ये बड़ी कुशल थीं। 6.5.9.11 श्री भूरसुन्दरी (सं. 1925) इनका जन्म संवत् 1914 में नागर के समीप बुसेरी नामक गांव में हुआ। इनके पिता का नाम अखयचन्दजी रांका तथा माता का नाम रामाबाई था। अपनी भुआ से प्रेरणा पाकर 11 वर्ष की उम्र में साध्वी चंपाजी से इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। ये कवयित्री होने के साथ-साथ गद्य लेखिका भी थीं। इनके निम्नलिखित 6 ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं। (1) भूरसुन्दरी जैन भजनोद्धार (सं. 1980) (2) भूरसुन्दरी विवेक विलास (सं. 1984), (3) भूर सुन्दरी बोध विनोद (सं. 1984), (4) भूरसुन्दरी ज्ञान प्रकाश (सं. 1986), (5) भूरसुन्दरी विद्याविलास (सं. 1986), (6) भूरसुन्दरी अध्यात्म-बोध (सं. 1995)। इनकी रचनाएं मुख्य तथा स्तवनात्मक और उपदेशात्मक हैं। इन्होंने पहेलियां भी लिखी हैं।378 6.5.9.12 श्री पन्नादेवी जी (सं. 1957-2001) ___ आपका जन्म वि. सं. 1948 में सोजत जिले के 'सवराड़' ग्राम में माल गोत्रीय परिहारवंश में हुआ। नौ वर्ष की उम्र में ही सं. 1957 में श्री लछमांजी, गुलाबकंवरजी के पास आप दीक्षित हुई। आप एक विदुषी प्रभाव संपन्ना साध्वी थीं। 'काणुजी भैरूं नांका' में प्रतिवर्ष 5000 बकरों की बलि होती थी, आपकी प्रेरणा से इस घोर हिंसाकाण्ड पर प्रतिबंध लगा। आप सं. 2021 को ब्यावर में स्वर्गवासी हुई। आपका जीवन चरित्र साध्वी सुगनकंवरजी द्वारा ‘पन्ना स्मृतिग्रंथ' में प्रकाशित है।79 6.5.9.13 प्रवर्तिनी श्री उमरावकंवरजी 'अर्चना' (1994 से वर्तमान) आपका जन्म किशनगढ़ (राज.) के दादिया ग्राम में वि. सं. 1979 में हुआ। वि. सं. 1994 में नोखा मण्डी में पू. प्रवर्तक श्री हजारीमलजी म. सा. से दीक्षा ग्रहण कर आप श्री चौथांजी महासती की परंपरा के श्री सरदार 377. राजस्थान के जैन संत, लेख-डॉ. नरेन्द्र भानावत, पुस्तक-राजस्थान का जैन साहित्य, पृ. 196 378. महासती द्वय स्मृति, ग्रंथ, पृ. 55 379. श्री केसरदेवी गौरव ग्रंथ, खंड 3, पृ. 330 663 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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