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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास की, आपके लेखन का काल सं. 1851 से 57 के मध्य रहा।7। विशाल आगम-साहित्य का संपूर्ण दो बार आलेखन एक अद्वितीय ऐतिहासिक कीर्तिमान है, जो स्वर्णपृष्ठों पर अंकित करने योग्य है। इस प्रकार का आलेखन आपकी अत्युच्चकोटि की मन:स्थिरता, लेखन कुशलता एवं अपरिश्रान्त उद्यमशीलता को दर्शाते हैं। 6.5.9.5 श्री हुलासांजी (सं. 1887) आपने पाली में सं. 1887 में क्षमा व तप पर स्तवन लिखा, जो आचार्य विनयचन्द्र ज्ञान भंडार जयपुर में सुरक्षित हैं।72 6.5.9.6 श्री चम्पाकुंवरजी (19वीं सदी) आपके विषय में इतना ही उल्लेख है कि आप एक महान धर्मप्रभाविका श्रमणी थी, संभव है आप महासती फतेहकुंवरजी की शिष्या रही हो अथवा शिष्यानुशिष्या। आपने जिनधर्म को जन-जन तक पहुंचाने में योग्यतम साध्वियाँ तैयार की, उनमें केवल श्री रायकुंवरजी का ही नामोल्लेख प्राप्त होता है।373 6.5.9.7 श्री रायकुंवरजी (20वीं सदी) आप महासती श्री चम्पाकुंवरजी की सुयोग्य अंतेवासिनी तथा उत्तराधिकारिणी थीं। तपश्चरण, योगानुष्ठान एवं साधना में तन्मयता आपके जीवन के प्रमुख अंग थे, ऐसा भी उल्लेख प्राप्त होता है कि आपको दिव्य दैविक शक्तियाँ उपलब्ध थी। आपने अनेक भव्यात्माओं को प्रतिबोधित किया था, जिसमें श्री जोरावरमलजी म. सा., श्री कानमलजी म. सा., स्वामी हजारीमलजी महाराज आदि प्रमुख हैं।374 6.5.9.8 श्री चौथांजी (20वीं सदी) __ आप महासती रायकुंवरजी की शिष्या थीं। आप आगम-निष्णात विदुषी श्रमणी थीं, आपने अनेकों साध्वियों को ही नहीं वरन् साधुओं को भी आगमों का अध्ययन करवाकर शास्त्रों में पारंगत बनाया था। आपकी कई शिष्याएँ हुईं, उनमें सरदारकुंवरजी के ही नाम का उल्लेख प्राप्त हुआ।75 6.5.9.9 श्री सरदारकुंवरजी (20वीं सदी) आप मरूधरा का प्रख्यात आगमज्ञ यशस्वी महासती थीं। बालब्रह्मचारी एवं महान धर्मप्रभाविका थी, धर्मशासन के महानसेवी स्वामी श्री ब्रजलालजी म., बहुश्रुत पंडितरत्न युवाचार्य श्री मिश्रीमलजी म., "मधुकर', आत्मार्थी मुनि श्री मांगीलालजी महाराज जैसी महान आत्माओं को उद्बोधित कर संयम मार्ग पर बढ़ाने का श्रेय आपको ही है। आपकी एक शिष्या है-महासती श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना'3761 371. अर्चनार्चन, संपादकीय, आर्या सुप्रभा, पृ. 16 372. साध्वी चंद्रप्रभा, महासती द्वय स्मृति ग्रंथ, पृ. 54 373. अर्चनार्चन, संपादकीय पृ. 16 374-376. वही, पृ. 17 662 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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