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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ श्री प्रकाशचंदजी संचेती की आप धर्मपत्नी रहीं, तपस्वी संत श्री चम्पालालजी महाराज के दर्शन से श्री संचेतीजी दीक्षा के लिये तत्पर हुए तो आपने भी अपनी अथाह धन-सम्पत्ति का मोह त्याग कर पति के साथ ही संवत् 2051 में जयपुर में दीक्षा अंगीकार की। आपने संवत्सरी के दिन अत्यंत सादगी से दीक्षा ली, जो जैनसमाज में त्याग के आदर्श को प्रस्तुत करने वाली हैं, आप श्री चंद्रकांताजी की शिष्या बनीं। एवं प्रकाशचंद्रजी मुनि श्री शालिभद्रजी के नाम से आत्मार्थी संत रत्न हैं।366 6.5.9 आचार्य श्री धर्मदासजी की माखाड़-परम्परा का श्रमणी-समुदाय : क्रियोद्धारक आचार्य धर्मदासजी के शिष्यों में आचार्य धन्नाजी का प्रमुख स्थान था। धन्नाजी के शिष्या भूधरजी हुए। भूधरजी के अनेक शिष्य हुए जिनमें श्री रघुनाथजी, श्री जयमलजी और श्री कुशलोजी प्रमुख थे। कुशलोजी से रत्नवंश की नींव पड़ी।67 हम यहां तीनों शाखाओं की श्रमणियों का सम्मिलित ज्ञातव्य प्रस्तुत कर रहे हैं। 6.5.9.1 आर्या केशरजी (सं. 1810) आप श्री धर्मदासजी महाराज की परंपरा में श्री परसरामजी म. के संप्रदाय की साध्वी थी। संवत् 1810 में पंचेवर ग्राम के सम्मेलन में आप अग्रणी साध्वी के रूप में उपस्थित थीं, आपकी संप्रदाय के श्री खेतसीजी श्री खिंवसीजी म. के साथ आप वहाँ पधारी थी।368 6.5.9.2 श्री चतरूजी (सं. 1820) श्री हरकूबाई ने सं. 1820 में "चतरूजी की सज्झाय" काव्य रचा369 उसमें ये शासन प्रभाविका महासाध्वी के रूप में उल्लिखित हैं। 6.5.9.3 श्री अमरूजी (सं. 1820) आपके जीवन पर श्री हरकूबाई द्वारा रचित 'महासती अमरूजी का चरित्र' सं. 1820 किसनगढ़ का लिखा हुआ है इसका उल्लेख श्री अगरचंद नाहटा ने किया है। 70 6.5.9.4 श्री फतेहकुंवरजी (सं. 1851 के लगभग) आप धन्नाजी महाराज की परंपरा के आचार्य श्री जयमलजी महाराज की आज्ञानुवर्तिनी साध्वी थीं। महासती अखुजी की पुत्री एवं शिष्या थीं, सतत स्वाध्याय, आगम अनुशीलन मानों आपका व्यसन था, आपकी लेखन कला एवं लेखन-शक्ति अद्भुत थी, उल्लेख है कि आपने एक ही कलम से बत्तीस आगमों की दो बार पांडुलिपि तैयार 366. उ. प्र. श्री कौशल्यादेवी जी, जीवनदर्शन, पृ. 46 367. स्थानकवासी परंपरा का इतिहास, पृ. 362 368. ऋषि संप्रदाय का इतिहास, पृ. 85 369. अगरचंदजी नाहटा, ऐतिहासिक काव्य संग्रह, पृ. 214-15 370. हिं. जै. सा. इ., भाग 4, पृ. 236 1661| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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