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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास दीक्षा ग्रहणकी। आपकी प्रेरणा से आपके दो भाई भी दीक्षित हुए जो क्रमशः पंडित श्री नगीनचन्द्रजी म. और प्रियवक्ता श्री विनयचन्द्रजी म. के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हुए। आपमें वैयावृत्य का उत्कृष्ट गुण था, बिना भेदभाव के आप सबकी सेवा में तल्लीन रहतीं। सं. 2023 में खानदेश के किसी ग्राम में आपका स्वर्गवास हुआ।350
6.5.8.42. श्री यशकुंवरजी (सं. 1984-स्वर्गस्थ)
आप प्रवर्तिनी श्री मेहताबकुंवरजी की 17 शिष्याओं में सबसे छोटी शिष्या थीं। आपका जन्म देवास तथा ससुराल उज्जैन में था। पतिवियोग के पश्चात् सं. 1984 चैत्र कृष्णा 11 को दीक्षा अंगीकार की।1
6.5.8.43. श्री सज्जनकुंवरजी (सं. 1986-2025)
रतलाम निवासी श्री सौभाग्यमलजी मुणोत आपके पिता, तपस्विनी साध्वी श्री रतनकुंवरजी दादी और श्री वृद्धिचंदजी म. चाचा थे। लघुवय में ही सं. 1986 में श्री मेनकुंवरजी म. की शिष्या के रूप में आपने दीक्षा ग्रहण की। आपका सैद्धान्तिक ज्ञान अच्छा था, अधिकांश समय शास्त्र-स्वाध्याय में व्यतीत करती थीं। धर्मकथा द्वारा लोगों में संस्कारों का निर्माण करने में भी आप कुशल थीं। रूग्णता के कारण आप अंतिम दिनों रतलाम में स्थिरवासिनी रहीं, सं. 2025 में वहीं समाधि पूर्वक दिवंगत हुईं।352
6.5.8.44. प्रवर्तिनी श्री सज्जनकुंवरजी
आपका जन्म 'जावरा' के रांका परिवार में हुआ। अल्पायु में ही आपने प्रव्रज्या अंगीकार की, आप श्री मानकुंवरजी की शिष्या बनीं। दीक्षा के पश्चात् आपने धार्मिक सैद्धान्तिक ज्ञान अच्छा उपार्जन किया। आपके हस्ताक्षर बड़े सुन्दर थे। आपने मालवा, मेवाड़, मारवाड़, पंजाब, जम्मू, दिल्ली, महाराष्ट्र आदि दूर-दूर के क्षेत्रों में जाकर धर्म की प्रभावना की। आपकी बारह शिष्याएँ हुईं- श्री टीबूजी (रतलाम), श्री चम्पाकुंवरजी (उज्जैन), श्री पुष्पकुंवरजी (दक्षिण) श्री छगनकुंवरजी (रतलाम), श्री सुमतिकुंवरजी, श्री तेजकुंवरजी, श्री ललितप्रभाजी एम. ए. पी.एच.डी., तपस्विनी श्री शीलकुंवरजी, श्री रमणिककुंवरजी, श्री ललितप्रभाजी की शिष्या विश्वज्योतिजी (एम. ए.) आदर्शज्योतिजी तथा श्री पुष्पकुंवरजी की शिष्या कीर्तिसुधाजी हैं।353 6.5.8.45. श्री केसरकुंवरजी
आप श्री राजकुंवरजी की द्वितीय शिष्या थीं। आप जावरा निवासिनी थीं, भरा-पूरा परिवार छोड़कर पति की विद्यमानता में ही आप प्रवर्जित हो गईं। आप बड़ी सेवाभाविनी थीं, व्याख्यान के माध्यम से जनता में धर्म प्रेरणा भी अच्छी जागृत की। आपकी तीन शिष्या-प्रशिष्याएँ हैं। (1) श्री दिलसुखकुंवरजी (जालनावाले) दीक्षा सं. 1993 मृगशिर कृ. 5 (2) श्री गुलाबकुंवरजी (रतलाम वाले) दीक्षा सं. 2010 मृगशिर शुक्ला 10 (3) श्री प्रमोदकुंवरजी (लिमड़ी) दीक्षा सं. 2029 रतलाम में।54 350. वही, पृ. 235
354. वही, पृ. 296 351. वही, पृ. 229 352. वही, पृ. 218 353. वही, पृ. 293
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