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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ वर्ष की आयु में दीक्षा ग्रहण की, और विशिष्ट ज्ञानाभ्यास किया। प्रवचन कला में भी आप पटु थीं, राह चलता व्यक्ति भी आपकी मनमोहक वाणी से आकर्षित होकर प्रवचन में बैठ जाता था, आपने दक्षिण प्रदेश में विचरण करके भी धर्म का खब प्रचार-प्रसार किया। आप विनीत, व्यवहार कुशल, निर्भीक व स्पष्टवक्ता थीं। सं. 1978 में आपको प्रवर्तिनी पद पर अधिष्ठित किया गया था। वि. सं. 2001 पौष कृष्णा 8 को रतलाम में अनशन पूर्वक स्वर्गवासिनी हुईं। आपकी आठ शिष्याएँ हुईं।324 6.5.8.18. प्रवर्तिनी श्री राजकुंवरजी (सं. 1960 के बाद - ) ___ आपका जन्म जावरा में पिता मूलचंदजी एवं माता धापीबाई के यहाँ हुआ। विवाह के बाद पति का स्वर्गवास हो जाने पर श्री टीबूजी म. के उपदेश से प्रव्रज्या अंगीकार की। आप विचारशीला एवं क्रियानिष्ठ साध्वी थीं। श्री टीबूजी म. के स्वर्गवास के पश्चात् सं. 2001 में आपको चतुर्विध संघ ने प्रवर्तिनी पद प्रदान किया। कुछ वर्ष इस पद पर रहकर रतलाम में संथारा सहित स्वर्ग-प्रस्थान कर गईं। आपकी तीन शिष्याएँ थीं-श्री श्रृंगारकुंवरजी (सरसी), श्री गुलाबकुंवरजी (थांदला), सेवाभाविनी व्याख्यात्री श्री केसरकुंवरजी। श्री गुलाबकुंवरजी की श्री सज्जनकुंवरजी तथा केसरकुंवरजी की श्री दिलसुखकुंवरजी, श्री गुलाबकुंवरजी, श्री प्रमोदकुंवरजी ये तीन शिष्याएँ हैं।25 6.5.8.19. श्री पानकुंवरजी (सं. 1960- ) ___आप झालावाड़ छावनी की निवासिनी थीं, विवाह के कुछ समय बाद पति वियोग हो जाने पर सं. 1960 चैत्र शुक्ला 5 को 14 वर्ष की आयु में प्रवर्तिनी श्री महताबकुंवरजी के पास दीक्षा ग्रहण की। आप व्याख्यात्री और धर्म प्रचारिका थीं। आपकी तीन शिष्याएँ हईं- (1) श्री तेजकंवरजी - झालोद निवासनी, तीस वर्ष की उम्र में सं. 1967 माघ शुक्ला 6 को वखतगढ़ में दीक्षा ली, ये तपस्विनी थीं। (2) श्री गुलाबकंवरजी -गेता-हाड़ोती निवासिनी, 35 वर्ष की आयु में सं. 1983 कार्तिक कृष्णा 13 बुधवार को दीक्षा। (3) श्री जोरावरकुंवरजी -सायपुरा निवासिनी, सं. 2002 उज्जैन में माघ शुक्ला 5 बुधवार को दीक्षा, ये तपस्विनी थीं। इन सबका स्वर्गवास हो चुका है।326 6.5.8.20. श्री हंसकुंवरजी (सं. 1961 - ) आप राणापुर झाबुआ ग्राम निवासिनी थीं, सं. 1961 ज्येष्ठ शु. 6 को प्रवर्तिनी श्री महताबांजी के पास दीक्षा हुई, आपकी तीन शिष्याएँ हुईं- (1) श्री गुलाबकुंवरजी - स्थान चडवाला, 35 वर्ष की आयु में सं. 1966 में दीक्षा। (2) श्री धनकुंवरजी - स्थान करजू, दीक्षा सं. 1968 कार्तिक शुक्ला 11, (3) श्री उम्मेदकुंवरजी - स्थान लांब्या, दीक्षा सं. 1971 माघ शुक्ला 5, इनकी दो शिष्याएँ हुई-श्री सौभाग्य कुंवरजी, श्री जतनकुंवरजी।327 6.5.8.21. श्री सुगनकुंवरजी (सं. 1964- ) आप मान.रोल-हाड़ोती निवासिनी थीं। बाल्यवय में अविवाहित अवस्था में सं. 1964 माघ शुक्ला 5 मांगरोल 324. (क) वही, पृ. 232, (ख) श्री केसरदेवी गौरव ग्रंथ, खंड 3, पृ. 343 325. वही, पृ. 233 326-327. वही, पृ. 227 651 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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