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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास उज्जैन शाखा से संबद्ध मानती थीं। उनकी अनेक शिष्याएँ हुई। महिदपुर, झार्डा, सोंधवाड़ा उज्जैन, वखतगढ़, बदनावर आदि क्षेत्रों में उनका विहार विशेष रूप से होता था। इनकी शिष्या प्यारांजी (सं. 1996) पश्चात् मोहनकुंवरजी (सं. 1996) उनकी कंचनकंवरजी (सं. 2021) शिष्या हुई।319 6.5.8.13. श्री नानूजी (सं. 1953) आप धरियावद ग्राम की निवासिनी, हुम्मड़ दिगम्बर परिवार की थीं। सं. 1953 चैत्र शुक्ला 13 को धरियावद में दीक्षा हुई। आप शान्त स्वभाव की आत्मसाधिका थी। श्री प्रेमकुंवरजी महाराज की आप शिष्या थीं।320 6.5.8.14. श्री फूलकंवरजी (सं. 1954) आप बड़े मेनकुंवरजी की द्वितीय शिष्या थीं। खाचरोद के समीप धानासुता ग्राम आपका निवास स्थान था। सं. 1954 में आपने दीक्षा अंगीकार की थी। आप अत्यंत निर्भीक स्वभाव की एवं शान्त प्रकृति की थीं। शिवगढ़ (रतलाम) चातुर्मास में आप छंद-स्तोत्र आदि का पाठ कर रहीं थीं, एक सर्प वहां आया और चुपचाप स्तोत्र पाठ श्रवण करने लगा, स्तोत्र सुनकर वह चला गया, सतीजी वहीं बैठी रहीं। दूसरे दिन भी सर्प आया ऐसे नित्य सर्प आता और स्तोत्र सुनकर चला जाता, एक दिन आप तेज बुखार के कारण स्तोत्र नहीं सुना पायी, दूसरी सतियाँ डरने लगे उन्होंने सर्प को आने से मना कर दिया तब से वह अदृश्य हो गया, अंत में सं. 2001 से आप 30 दिन के संथारे के साथ स्वर्गवासिनी हुई। आपकी दो शिष्याएँ हुईं, उनमें एक का नामोल्लेख है-श्री मानंकवरजी।321 6.5.8.15. श्री रतनकुंवरजी (सं. 1954) आप रतलाम निवासीनी, श्रीमान् घासीरामजी मुणोत की धर्मपत्नी थीं। सं. 1954 में अपने पुत्ररत्न श्री वृद्धिचन्दजी के साथ दीक्षा ग्रहण की थी आप श्री वाल्हीजी की शिष्या थीं, बड़ी तपस्विनी साध्वी थीं, दीर्घ तपस्याएँ भी की थीं। पांच दिन के अनशन पूर्वक आपने देह त्याग किया। स्वर्गवास की तिथि ज्ञात नहीं है।322 6.5.8.16. श्री चम्पाजी (सं. 1958) आप अकोदड़ा ग्राम की निवासिनी थीं। वहीं सं. 1958 ज्येष्ठ शुक्ला 11 को आपकी दीक्षा हुई। आप तपस्विनी थीं, 21 या 22 मासखमण तथा अन्य कई फुटकर तपस्याएँ की, आप श्री प्रेमकुंवरजी की शिष्या थीं।323 6.5.8.17. प्रवर्तिनी श्री टीबूजी (सं. 1959-2001) आपका जन्म रतलाम निवासी श्री माणिकचंदजी सुराना की धर्मपत्नी हीराबाई की कुक्षि से हुआ, तथा विवाह पिलोदा के प्रसिद्ध एवं समृद्ध घराने में हफआ। कुछ ही समय पश्चात् पति बालचंदजी ने अपनी माता के बहकावे में आकर आपका परित्याग कर दिया। आपने सं. 1959 में श्री लच्छीजी की शिष्या श्री सिरेकुंवरजी के पास 18 320. वही, पृ. 226 321-322. वही, पृ. 215 323. वही. पृ. 227 650 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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