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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास श्री रीटाबाई, श्री ईलाबाई, श्री ताराबाई, श्री सुशीलाबाई, श्री हंसाबाई, श्री मंजरीबाई, श्री प्रवीणाबाई, श्री मेघाबाई, श्री हेमलताबाई, श्री मीनाबाई आदि विदुषी आचारनिष्ठ श्रमणियाँ हैं, जो मात्र कच्छ में ही विचरण करती हैं, चातुर्मास हो या शेषकाल; कभी भी कच्छ से बाहर गुजरात प्रान्त में भी विचरण नहीं करतीं। बाह्य जन-सम्पर्क से रहित ये सदा अपने स्वाध्याय ध्यान आदि में तल्लीन रहती हुई निर्दोष संयम का पालन करती हैं।306
6.5.7.1 प्रवर्तिनी श्री देवकुंवरबाई (सं. 1975 - 2061)
कच्छ आठ कोटी छोटी पक्ष में प्रवर्तिनी श्री देवकुंवरबाई दृढ़ संयम निष्ठ साध्वी हुई हैं। कच्छ के बड़ाला ग्राम में सं. 1975 में आपकी दीक्षा हुई थी। प्रवर्तिनीजी श्री पांचीबाई के कालधर्म के पश्चात् सं. 1996 में उनके पाट पर आप विराजमान हुईं।307
6.5.8 आचार्य श्री धर्मदासजी की मालव परम्परा एवं श्रमणी-समुदाय :
स्थानकवासी सम्प्रदाय के क्रियोद्धारक आचार्यों में श्री धर्मदासजी महाराज का नाम अत्यंत आदर के साथ लिया जाता है। आपने अपने जीवन काल में एक कम 100 पुरूषों को प्रभावित कर दीक्षा प्रदान की थी, उनके प्रमुख 22 टोले बनाकर विभिन्न क्षेत्रों में धर्म प्रचार हेतु भेजा था। उनमें श्री धन्नाजी महाराज की परम्परा मारवाड़ में श्री मूलचंदजी महाराज की परम्परा गुजरात में एवं छोटे पृथ्वीराजजी महाराज की शिष्य परम्परा मेवाड़ में विकसित हुई। शेष शिष्यों की परम्पराओं के समूह को 'मालव-परम्परा' कहा जाता है। इस परम्परा, का विस्तृत इतिहास श्री उमेशमुनिजी 'अणु' ने 'श्री धर्मदासजी महाराज और उनकी मालव परम्परा पुस्तक में अत्यंत खोज पूर्वक लिखा है, हम उसीको आधार मानकर मालव-परम्परा की श्रमणियों का उपलब्ध विवरण यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।
6.5.8.1. श्री लाडुजी, डायाजी (सं. 1718)
मालवा पट्टावली में उल्लेख है कि श्री धर्मदासजी महाराज ने अपने क्रियोद्धार (सं. 1716) के दो वर्ष पश्चात् लाडुजी, डायाजी आदि पांच महिलाओं को दीक्षित किया था। डायाजी उनकी मातेश्वरी थी और उन्होंने धर्मदासजी के अतिरिक्त अपने एक पुत्र को भी दीक्षा दी, ऐसी संभावना एक प्राचीन पत्र के आधार पर प्रकट की गई है।108 ये दीक्षाएं गुजरात में हुई या अन्य प्रान्त में, उनकी विद्यमानता में साध्वियों का कितना परिवार था, भिन्न-भिन्न प्रान्तों में सायी वर्ग भिन्न-भिन्न रूप से रहा या एक प्रवर्तिनी की नेश्राय में आदि प्रश्नों के समाधान के लिये एद्विषयक कोई सामग्री उपलब्ध नहीं होती।
6.5.8.2. आर्या श्री कर्माजी सुकड़जी (सं. 1817-20 के मध्य)
ये साध्वियाँ कब हुईं, इस विषय में प्रामाणिक परिचय उपलब्ध नहीं हुआ है, पर उन पर लिखी गई एक चिट्ठी से उनके व्यक्तित्व की झलक मिलती है, इस चिट्ठी में न सन्, संवत् हैं, न कहां से, किसने लिखी, उसका 306. समग्र जैन, चातुर्मास सूची, 2004, पृ. 140-41 307. जै. कां. स्वर्ण जयंति ग्रंथ, पृ. 57 308. श्री उमेशमुनि 'अणु' श्रीमद् धर्मदासजी महाराज और उनकी मालव परम्परा, पृ. 41
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