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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास वर्ष निरतिचार संयम का पालन कर 28 वर्ष की उम्र में बोटाद में स्वर्गवासिनी हुईं। आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से संबंधित “श्री मंजुल जीवन मंजुषा" पुस्तक प्रकाशित है।299 बोटाद सम्प्रदाय की वर्तमान में श्री सविताबाई, श्री सरोजबाई, श्री मधुबाई, श्री माधुरीबाई आदि विदुषी श्रमणियाँ हैं, इनकी नेश्राय में श्री रक्षाबाई, श्री उर्मिलाबाई, श्री दर्शनाबाई, श्री मैत्रीबाई, श्री सुधाबाई, श्री ज्योत्स्नाबाई, श्री सुजाता बाई, श्री मीनाबाई, श्री जागृतिबाई, श्री हंसाबाई, श्री वंदनाबाई, श्री रेणुकाबाई, श्री दीपिकाबाई, श्री जिनाज्ञाबाई, श्री आदि 49 साध्वियों का परिवार है।300 6.5.6 कच्छ आठ कोटी मोटी पक्ष की श्रमणियाँ (सं. 1856 से वर्तमान) कच्छ आठ कोटी के संस्थापक श्री इन्द्रचंदजी के चतुर्थ पट्टधर श्री किरसनजी हुए, ये श्रावकों का आठ कोटी प्रत्याख्यान मानते थे, अतः इनकी संप्रदाय आठ कोटी मोटा पक्ष के नाम से प्रसिद्ध हुई। यह संप्रदाय संवत् 1856 से अस्तित्व में आई, तभी से इस संप्रदाय में साध्वियों का वर्चस्व रहा है, किंतु उनकी प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। वर्तमान कार्यवाहक श्री ताराचंदजी महाराज की सूचनानुसार इस संप्रदाय की पांच साध्वियाँ पूर्व में संथारा साधिका हुई हैं-श्री मेघबाई स्वामी, श्री मीठीबाई स्वामी, श्री देवकुंवरबाई, श्री पानबाई, श्री सूरजबाई। इनके अतिरिक्त अन्य श्रमणियों की जीवन रेखाएँ इस प्रकार प्राप्त हुई हैं। 6.5.6.1 श्री मीठीबाई स्वामी 'भोजाय' (सं. 1949-2019) आप श्री व्रजपालजी स्वामी की सुशिष्या थीं। संवत् 1926 में आपका जन्म तथा संवत् 1949 में दीक्षा हुई। आप उग्रतपस्विनी थीं। दीक्षा के पश्चात् 70 वर्ष की दीक्षा-पर्याय तक पर्युषण तथा आयंबिल की ओली में कभी आहार नहीं किया। 90 वर्ष की उम्र तक प्रतिदिन खमासमण से 500 बार वंदना करतीं। जीवन पर्यन्त वे पैदल विहार करती रहीं, डोली या व्हीलचेयर का प्रयोग नहीं किया। 93 वर्ष की उम्र में वर्षीतप में संथारा अंगीकार किया जो 45 दिन चला। संथारे के 17वें दिन अपनी प्रशिष्या सेवाभाविनी श्री निरंजनाबाई, जो कभी प्रवचन नहीं देती थीं, उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम प्रभावक व्याख्याता होगी- उनका आशीर्वाद फलीभूत हुआ। इस प्रकार श्री मीठीबाई कच्छ आठ कोटी संघ की महाप्रभावशालिनी साध्वी हुईं।301 6.5.6.2 श्री जेतबाई स्वामी (सं. 1980-स्वर्गस्थ) आप श्री व्रजपालजी महाराज की तेजस्विनी शिष्या थीं। उन दिनों भुजपुर गांव में किसी भी जैन साधु-साध्वी का चातुर्मास नहीं हो पकता, यह विरोधी प्रस्ताव ताम्रपत्र पर लिखकर पास करवाया गया था, अतः वहाँ कोई भी चातुर्मास नहीं कर सकता था। संवत् 1980 में आषाढ़ पूर्णिमा के दिन सांयकाल विहार करती हुई आप वहाँ पहुंची तो पुलिस ने उन्हें स्थानक खाली करने के लिये कहा। साध्वीजी ने कहा-“विहार तो अब नहीं कर सकते, हमें आप साढ़े तीन हाथ जमीन प्रदान कर दें, हम संथार कर लेते हैं।" आपकी चारित्रिक निष्ठा व अपूर्व दृढ़ता देखकर सरकारी अधिकारियों ने सहर्ष चातुर्मास की आज्ञा प्रदान की। तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष वहाँ चातुर्मास होते हैं।302 299. मुनि श्री सुधेन्द्र, प्रकाशक-भूधरलाल हरखचंद, तुरखावाला, रामकृष्णनगर-4, राजकोट, 1971 ई. (द्वि. सं.) 300. समग्र जैन चातुर्मास सूची 2004, पृ. 142 301-302. श्री ताराचंदजी महाराज की सूचनानुसार 644 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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