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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ उग्रतपस्विनी श्री जवेरीबाई, श्री सुभद्राबाई, श्री रतनबाई, श्री प्रमिलाबाई, श्री हंसाबाई, श्री गीताबाई, श्री सुवृत्ताबाई, श्री चन्द्रेशाबाई, श्री भावेशाबाई, श्री अंगूरप्रभाबाई, श्री नीताबाई, श्री छायाबाई, श्री ताराबाई | 297 ये सभी विदुषी स्वाध्याय प्रेमी, मधुर व्याख्यानी साध्वियाँ हैं, इनका अन्य परिचय उपलब्ध नहीं हुआ है। 6.5.5 बोटाद संप्रदाय की श्रमणियाँ : आचार्या मूलचंद्रजी के पंचम शिष्य श्री विट्ठलजी से गुजरात में एक नवीन सम्प्रदाय का उद्भव हुआ, जिसे 'ध्रांगध्रा सम्प्रदाय' कहा जाता था। इसमें मूखणजी और वशरामजी के शिष्य श्री जसाजी 'बोटाद ' पधारे, तबसे यह संप्रदाय 'बोटाद सम्प्रदाय' के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इस संप्रदाय में श्री अमरचंदजी और श्री माणकचंदजी हुए, वर्तमान में श्री नवीनमुनिजी आचार्य हैं। 6.5.5.1 श्री चम्पाबाई (सं. 2017-60 ) बोटाद सम्प्रदाय की आद्या श्रमणी के रूप में श्री चम्पाबाई महासतीजी का नाम चिरस्मरणीय रहेगा। आप बोटाद साध्वी संघ की प्रमुख थीं। संवत् 1971 हड़दड़ ग्राम जिला बोटाद में मां छबलबहेन एवं पिता लक्ष्मीचंद भाई के यहां आपने जन्म ग्रहण किया। 10 वर्ष की उम्र से ही चौविहार सामायिक एवं अनेक व्रत- प्रत्याख्यान आदि में आपकी रूचि थी । बोटाद के श्री किस्तूरभाई के साथ लग्न हुआ, किंतु श्री शिवलालजी म. सा. के प्रवचनों में मृगापुत्र अध्ययन के माध्यम से नरक के दुःखों का वर्णन सुनकर संसार से छूटने की लौ जागृत हुई, वैवाहिक जीवन बंधन रूप लगने लगा। संयोग से पति का देहावसान हो गया, तो आप दीक्षा के लिये कृतसंकल्प हो गईं। उस समय तक बोटाद संप्रदाय में कोई साध्वी नहीं थी । अतः गोंडल संप्रदाय की सौम्यमूर्ति उदारचेता श्री रम्भाबाई ने सन्निष्ट नियामिका बनकर इनके साथ अन्य तीन बहनों को बोटाद संप्रदाय की साध्वियों के रूप में दीक्षा प्रदान की तथा संयम की शिक्षा देकर परिपक्व पात्र बनाया। आपकी दीक्षा वैशाख कृष्णा 7 रविवार संवत् 2017 को बोटाद संप्रदाय के स्वर्गीय श्री कानजी महाराज के मुखारविंद से हुई। अन्य तीन श्रमणियाँ थीं - श्री सविताबाई, श्री मंजुलाबाई व श्री सरोजबाई | आप 8 वर्ष तक श्री रम्भाबाई की आज्ञा से विचरीं । पश्चात् उन्हीं की आज्ञा से बोटाद के आसपास के क्षेत्रों में विचरीं आपकी 48 शिष्या - प्रशिष्याएँ बनीं। 13 वर्षों तक वर्षीतप करके आपने अपनी आत्मा को कुंदनवत् चमकाया। संवत् 2060 माघ कृष्णा 1 को आपका स्वर्गवास हुआ 1 298 6.5.5.2 श्री मंजुलाबाई (सं. 2017-27 ) आपका जन्म बोटाद में पोष शुक्ला 1 संवत् 1998 में शाह गांडाभाई (मोहनभाई) के यहां हुआ। संवत् 2027 वैशाख कृष्णा 7 रविवार को 19 वर्ष की वय में आप श्री चम्पाबाई के साथ दीक्षित होकर उन्हीं की शिष्या के रूप में प्रसिद्ध हुईं। आप मितभाषी, अनेक आगम- स्तोक आदि की अभ्यासी और त्याग - वैराग्य में उल्लासी साध्वी थीं, बोटाद संप्रदाय की स्तम्भ स्वरूप थीं, आपमें नेतृत्वक्षमता, मध्यस्थता, निष्पक्षता और वात्सल्यता का अपूर्व संगम था। 12-13 वर्ष की उम्र में आपने वर्षीतप की आराधना कर आत्मबल का परिचय दिया था। 10 297. समग्र जैन चातुर्मास सूची सन् 2004, पृ. 150 298. शाह अनोपचंद भाई रचित 34 सलोकों के आधार पर ( अप्रकाशित रचना ) Jain Education International. 643 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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