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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
कर आपने न्याय-दर्शन, व्याकरण, आगम एवं संस्कृत-प्राकृत में योग्यता प्राप्त की। आप गुजरात से लेकर राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र,हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार, आसाम तक दूर-दूर क्षेत्रों में विचरीं। लेकिन 38 वर्ष की अल्पायु में ही आप चास' चातुर्मास हेतु जाते हुए पूर्ण वेग से आते हुए ट्रक के द्वारा दुर्घटानाग्रस्त होकर चास के नजदीक दामोदरपुल के पार पर काल कवलित हो गईं। आपकी ज्येष्ठ भगिनी श्री वनिताबाई भी दीक्षित हैं। आपकी स्मृति में चास में श्री 'सुदर्शना अर्चिता स्मृति भवन' का निर्माण एवं श्मशान भूमि पर समाधि स्थान बना है।294 6.5.3.17 श्री अर्चिताबाई (सं. 2032-39)
आप सौराष्ट्र के जेतपुर ग्राम में श्री केशुभाई मोदी के यहां सं. 2007 में जन्मीं। बचपन से ही प्रखर प्रतिभा की धनी थीं, मैट्रिक में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुई, 15 वर्ष की अल्पवय में वर्षीतप की आराधना कर आपने अपूर्व आत्मबल का परिचय दिया। सं. 2032 वैशाख शु. 7 को आपकी दीक्षा तपस्वी श्री रतिलालजी महाराज के द्वारा 'मुक्त-लीलम' परिवार में हुई आप श्री सुदर्शनाबाई की शिष्या बनीं। आप अत्यंत मधुरकंठी एवं प्रवचन प्रभाविका थीं, साथ ही आप अनेक भाषाओं की ज्ञाता, परम विदुषी साध्वी थीं। आपकी भावना थी, जहां साधु-साध्वी कम पंहुचते हैं ऐसे क्षेत्रों में धर्म प्रभावना की जाय, इसके लिये अपनी गुरूणी के साथ दूर-दूर के क्षेत्रों में विचरीं। 'चास' चातुर्मास हेतु जाते हुए आप सुदर्शनाबाई के साथ ही दुर्घटना की शिकार बनकर वहीं स्वर्गवासिनी हो गई।95
6.5.3.18 श्री ज्योतिबाई (सं. 2029)
आप राजकोट निवासी श्री मनसुखलाल की सुपुत्री हैं, घर में मेडीकल की छात्रा होते हुए भी हस्तकला के प्रत्येक क्षेत्र में आपने योग्यता अर्जित की, किंतु गोंडल संप्रदाय की श्री इन्दुबाई महासती का एक व्याख्यान सुनकर सब कुछ निस्सार सा प्रतीत हुआ। सं. 2029 माघ शु. 11 को राजकोट में दीक्षा अंगीकार की। आपकी सेवा भावना अपूर्व है, विनय के साथ कार्यदक्षता, त्याग, ज्ञान व स्वाध्याय भी उच्चकोटि का है। आपकी गुरू भगिनी भानुबाई महुआ शहर के प्रभुदास भाई खोखाणी की कन्या हैं, इन्होंने स. 2031 में श्री गिरीशमुनिजी महाराज द्वारा दीक्षा अंगीकार की थी।
गोंडल गच्छ में चारित्र की दृढ़ हिमायती, सेवामूर्ति श्री जैकुंवरबाई तथा स्वाध्याय व सेवा में सतत तल्लीन श्री अचरतबाई महासतीजी का भी अत्यन्त श्रद्धा के साथ स्मरण किया जाता है, किंतु उनका इतिवृत्त अज्ञात है।
6.5.4 बरवाला-संप्रदाय की श्रमणियाँ :
आचार्य मूलचंद्रजी के तृतीय शिष्य श्री वनाजी के शिष्य कानजी (बड़े) से 'बरवाला' संप्रदाय प्रारंभ हुआ। वर्तमान में इस संप्रदाय के गच्छाधिपति संघनायक मधुरवक्ता श्री सरदारमुनिजी महाराज हैं। आपकी आज्ञा में इस समय 15 साध्वियाँ विचरण कर रही हैं, सन् 2004 की चातुर्मास सूची के अनुसार उनके नाम इस प्रकार हैं294. शासन-सुमन सुवासिका, संपादक-श्री जिज्ञेसमुनि, प्रकाशक-श्री प्राण परिमल प्रकाशन, श्री स्था. जैन संघ, चास-बोकाटो
(बिहार) ई. 1982 295. सही, शासन सुमन सुवासिका। 296. इन्दु नी तेजल ज्योति के आधार पर
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