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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ 6.5.3.13 श्री कंचनबाई (सं. 2007- ) आपका जन्म स्थान मोटा लीलीया में हुआ, पिता दामनगर निवासी श्री लल्लुभाई नागरदास अजमेरा थे, बगसदा में विवाह हुआ, 18 वर्ष के पश्चात् पति से वियोग होने पर पू. मीठीबाई महासती की प्रेरणा से 43 वर्ष की उम्र में मृगशिर शु. 2 रविवार के दिन धोराजी में दीक्षा ली। आपने कई आगम व स्तोक याद किये। साथ ही परम सेवाभाविनी थीं, संयम व आचरण में दृढ़ थीं। 291 6.5.3.14 श्री इन्दुबाई (सं. 2009-39) आपका जन्म करांची (पाकिस्तान) में श्री करमचन्दभाई तथा श्रीमती समरतबेन के यहां हुआ। अल्पवय में ही आपके मन में विरक्ति के भाव जागृत हुए, मृगशिर कृष्णा 10 को 18 वर्ष की आयु में चारित्रनिष्ठ श्री समरतबाई की शिष्या बनीं। आप आगम की गहन ज्ञाता थीं, तीव्र बुद्धि व अद्भुत मेधा से आप दिन में 60 गाथाएं कंठस्थ करती थीं। 100 स्तोक व 11 शास्त्र आपने याद किये थे, इन सबका जब तक पुनरावर्तन नहीं कर लेतीं, तब तक निद्रा नहीं लेतीं थीं। कई बार पुनरावृत्ति में 12 बज जाते थे। कर्मग्रन्थ आपका प्रिय विषय था, उसे सरल व सहज रूप से किसी को भी समझा देतीं। आप सहनशील व तपस्विनी थीं, आयंबिल की ओली, वर्धमान तप की ओली, आयंबिल उपवास के वर्षीतप, बेले- बेले वर्षीतप तेले-तेले एकांतर किये, इसके अतिरिक्त सैंकड़ों तेले जीवन में किये। निरतिचार चारित्र का पालन करती हुईं अंत में कैंसर की व्याधि में समताभाव रखकर तीन दिन के संथारे के साथ श्रावण कृ. 13 सं. 2039 को नागपुर में स्वर्गवासिनी हुईं। आपकी दो शिष्याएँ बनीं - श्री ज्योतिबाई, श्री भानुबाई । श्री इन्दुबाई ने समाज उद्धार के कार्य भी बहुत किये, कइयों को व्यसनमुक्त किया महुआ में अनेक परिवार जो वैष्णव धर्मानुयायी बन गये थे, उनको प्रयत्न पूर्वक प्रतिबोध देकर जैनधर्म से जोड़ने का महान कार्य किया, कइयों को सामायिक, प्रतिक्रमण याद कराये, व्रत- प्रत्याख्यान दिलाये | 292 6.5.3.15 डॉ. श्री तरूलताबाई (सं. 2014 ) आपका जन्म धारी निवासी श्री वनमालीभाई के यहां हुआ, संवत् 2014 फाल्गुन शुक्ला 2 को वेरावल में आपने दीक्षा अंगीकार की, आप गोंडल संप्रदाय की श्री ललिताबाई स्वामी की शिष्या हैं। आप परम विदुषी मधुर प्रवचनकर्त्री हैं। श्रीमद् राजचंद्रजी की अध्यात्मकृति 'आत्मसिद्धि शास्त्र' पर शोध-प्रबन्ध लिखकर आपने पी.एच. डी. की उपाधि प्राप्त की है, आपकी पुस्तक 'हूं आत्मा छू' हिन्दी गुजराती दोनों भाषाओं में प्रकाशित है, पुस्तक अत्यंत लोकप्रिय है । 293 6.5.3.16 श्री सुदर्शनाबाई (सं. 2027-39) आप जूनागढ़ निवासी श्री विनुभाई बाटविया की सुपुत्री थीं, सं. 2001 मृगसिर कृ. 6 को 'चास' में आपने जन्म लिया । सं. 2027 को घाटकोपर मुंबई में 'मुक्त लीलम' परिवार की महासती उषाबाई के पास दीक्षा अंगीकार की। आप सौम्य आकृति, शांत गम्भीर व विचारशील थीं। श्रमणी विद्यापीठ घाटकोपर मुंबई में चार वर्ष अध्ययन 292. इन्दु नी तेजल ज्योत, लेखिका - ज्योतिबाई महासतीजी प्रकाशक - श्री स्था. जै. संघ, वेस्ट (मुं.), ई. 1984 293. संपर्क सूत्र के आधार पर Jain Education International 641 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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