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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 6.5.3.9 श्री जयाकुंवरबाई (सं. 1976-स्वर्गस्थ) आपका जन्म ग्राम सरधार निवासी श्री हरखचन्द भाई गांधी (दशाश्रीमाली) एवं मातुश्री मीठीबाई के यहां सं. 1959 अषाढ़ शु. 13 को 'बिलखा' में हुआ, माता मीठीबाई की प्रेरणा से आप उन्हीं के साथ 17 वर्ष की वय में पंडित रत्न श्री पुरूषोत्तमजी महाराज के मुखारविंद से ज्येष्ठ शु. 6 सं. 1976 को दीक्षा अंगीकार कर मोटा दूधीबाई स्वामी की शिष्या के रूप में प्रसिद्ध हुईं। आपने दस महीने मांगरोल पाठशाला में संस्कृत एवं धार्मिक अध्ययन किया, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, नंदी आदि आगम व 125 थोकड़े कंठस्थ किये। आपकी बुद्धि इतनी प्रखर थी कि 30 दिन में 31 स्तोक व 14 दिन में नंदीसूत्र याद कर लिया था। दीक्षा के पश्चात् 7 वर्ष तक वयोवृद्ध गुरूणी की सेवा की, उपवास, बेले, तेले, चोले, पचोले, अठाई, नौ, दस आदि की कितनी ही तपस्या की, वर्षीतप भी किया।287 6.5.3.10 श्री अंबाबाई महासती (सं. 1979-2010) आपका जन्म समढीयार (सौराष्ट्र) गांव में पिता मोतीचंदभाई एवं माता साकरबाई के यहां हुआ। सावरकुंडला निवासी मोनजी भाई के साथ विवाह-संबंध हुआ, उनसे एक पुत्र की प्राप्ति भी हुई, किंतु पति एवं पुत्र दोनों का वियोग हो गया। वियोग ने वैराग्य को पैदा किया और आपने सावरकुंडला में ही सं. 1979 में 36 वर्ष की उम्र में श्री देवकुंवरबाई के पास दीक्षा अंगीकार की। आप एक अच्छी मार्गदर्शिका एवं हितशिक्षिका थी, आचार्य प्राणलालजी महाराज की आप सतत सहयोगिनी रहीं। आपकी शिष्याएँ समरतबाई लक्ष्मीबाई, नवलबाई, कुंदनबाई, पुष्पाबाई आदि हैं। सं. 2010 में 68 वर्ष की उम्र में जूनागढ़ में आपका स्वर्गवास हुआ।288 6.5.3.11 आर्या श्री शांताबाई (सं. 2002-से वर्तमान) - आपने गोंडल में पोष शु. 6 सं. 1983 के शुभ दिन श्री दलपतराम तेजपाल कोठारी एवं माता अंबाबाई के घर जन्म लिया तथ जूनागढ़ में सं. 2002 मृगशिर शु. 3 शुक्रवार को 19 वर्ष की उम्र में आचार्य पुरूषोत्तमजी महाराज से दीक्षा लेकर श्री जयाबाई स्वामी की शिष्या बनीं। आप सुस्वर गायिका हैं। दीक्षित जीवन में सात आगम, साधक सहचरी, निर्ग्रन्थ प्रवचन, 61 थोकड़े, कई छंद, सज्झाय स्तवन, स्तोत्र आदि स्मृतिस्थ किये।289 6.5.3.12 श्री प्राणकंवरबाई (सं. 2004-से वर्तमान) 'गोंडल' आपका जन्म राणपुर के श्री जयाचन्दभाई के यहां हुआ। सं. 2004 माघ शुक्ला 13 को सावरकुंडला में श्री मोतीबाई महासतीजी के परिवार में आप दीक्षित हुईं। आपने अपने हृदयस्पर्शी प्रवचनों के माध्यम से जन-जन को प्रभावित किया, आपके प्रवचनों की कई पुस्तकें प्रकाशित हैं-धर्मप्राण प्रवचन भाग 1-2, प्राण-परिमल, आचार प्राण प्रकाश, प्राण-प्रसादी, प्राण प्रगति, प्राण-प्रबोध, जनेता-मां नो उपकार। आपकी सभी पुस्तकें आगम के अधिकार को प्रवचन का माध्यम बनाकर लिखी गई हैं।290 287. मीठी म्हेक, पृ. 22 288. स्था. गोंडल गच्छ दर्शन, पृ. 40 289. मीठी म्हेक, पृ. 23 290-291. मीठी म्हेक, पृ. 24-25 640 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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